ब्यास नदी पंजाब और हिमाचल में बहने वाली प्रमुख नदी है। - Smachar

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ब्यास नदी पंजाब और हिमाचल में बहने वाली प्रमुख नदी है।

 ब्यास नदी

ब्यास नदी पंजाब और हिमाचल में बहने वाली प्रमुख नदी है।


ब्यास नदी का संस्कृत नाम विपाशा है। पंजाब (भारत) की पांच प्रमुख नदियों में से एक है। इसका उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार है। बृहद्देवता (संस्कृत में छंदशास्त्र का एक प्राचीन ग्रंथ है। इसके रचयिता ऋषि शौनक माने जाते हैं।) में शतुद्री या सतलुज और विपाशा का एक साथ उल्लेख है।

ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ या ‘विपाशा’ था। यह कुल्लू में व्यास कुंड से निकलती है। व्यास कुंड पीर पंजाल पर्वत शृंखला में स्थित रोहतांग दर्रे में है।

ब्यास नदी की पौराणिक कथा बेहद ही दिलचस्प है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भारतीय महाकाव्य के लेखक वेद व्यास से जोड़कर इस नदी को देखा जाता है। कहा जाता है कि इस नदी का नाम वेद व्यास के नाम पर ही रखा गया है। यह भी मान्यता है कि उन्होंने इसका निर्माण स्रोत झील, व्यास कुंड से किया था।

 यह कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा में बहती है। कांगड़ा से मुरथल के पास पंजाब में चली जाती है। मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, सुजानपुर टीहरा, नादौन और देहरा गोपीपुर इसके प्रमुख तटीय स्थान हैं। इसकी कुल लंबाई 460 कि॰मी॰ है। हिमाचल में इसकी लंबाई 256 कि॰मी॰ है। पंजाब से बहती हुई यह नदी सतलुज नदी में जाकर मिल जाती है।

कुल्लू में पतलीकूहल, पार्वती, पिन, मलाणा-नाला, फोजल, सर्वरी, तीर्थन और सैंज इसकी सहायक नदियां हैं। कांगड़ा में सहायक नदियां बिनवा न्यूगल, गज और चक्की हैं। यह प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों में से एक है।

ब्यास नदी को सिकंदर से भी जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि सिकंदर के भारत पर आक्रमण करने के रास्ते में इस नदी को सबसे बड़ी बाधा माना जाता था। वो पूर्व में इसी नदी को पार करके भारत पर आक्रमण करना चाहता था।

326 ई. पू. में सिकंदर महान के भारत आक्रमण की अनुमानित पूर्वी सीमा थी।

वाल्मीकि रामायण में अयोध्या के दूतों की केकय देश की यात्रा के प्रसंग में विपाशा (वैदिक नाम विपाश) को पार करने का उल्लेख है। महाभारत में भी विपाशा के तट पर विष्णुपद तीर्थ का वर्णन है। विपाशा के नामकरण का कारण पौराणिक कथा के अनुसार इस प्रकार वर्णित है, कि ऋषि वशिष्ठ पुत्र शोक से पीड़ित हो कर अपने शरीर को पाश से बांधकर इस नदी में कूद पड़े थे किन्तु विपाशा से पाशमुक्त होकर वह जल से बाहर निकल आए। महाभारत में भी इसी कथा की आवृत्ति की गई है। 

'दि मिहरान ऑव सिंध एंड इट्ज़ ट्रिव्यूटेरीज़' के लेखक रेवर्टी का मत है कि व्यास का प्राचीन मार्ग 1790 ई. में बदल कर पूर्व की ओर हट गया था और सतलुज का पश्चिम की ओर और ये दोनों नदियां संयुक्त रूप से बहने लगी थीं। रेवर्टी का विचार है कि प्राचीन काल में सतलुज व्यास में नहीं मिलती थी। किन्तु वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि शतुद्रु या सतलुज पश्चिमी की ओर बहने वाली नदी थी। अत: रेवर्टी का मत संदिग्ध जान पड़ता है। ब्यास को ग्रीक लेखकों ने हाइफेसिस कहा है।

 

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