गुरु नानक की शिक्षा किरत करो, बांट के खाओ और नाम जपो को अपनाना समय की जरूरत है : परमजीत सिंह गिल - Smachar

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गुरु नानक की शिक्षा किरत करो, बांट के खाओ और नाम जपो को अपनाना समय की जरूरत है : परमजीत सिंह गिल

गुरु नानक की शिक्षा किरत करो, बांट के खाओ और नाम जपो को अपनाना समय की जरूरत है : परमजीत सिंह गिल 



हिमालय परिवार संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और लोकसभा क्षेत्र गुरदासपुर के वरिष्ठ नेता परमजीत सिंह गिल ने कहा कि गुरु नानक जी ने पूरे एशिया में दूर-दूर तक यात्रा की और लोगों को संदेश दिया कि  (ईश्वर) समानता, भाईचारे के प्यार, अच्छाई और सदाचार पर आधारित एक अद्वितीय आध्यात्मिक, सामाजिक और राजनीतिक मंच स्थापित करता है।

उन्होंने कहा कि गुरु नानक जी के शब्द सिख धर्म के पवित्र धार्मिक ग्रंथ ,गुरु ग्रंथ साहिब में 974 काव्यात्मक शब्दों के रूप में दर्ज हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं जपुजी साहिब, आसा दी वार और सिद्ध गोष्ठी।  यह सिख धार्मिक विश्वास का हिस्सा है कि गुरु नानक की पवित्रता, दिव्यता और धार्मिक अधिकार की भावना उन नौ गुरुओं में से प्रत्येक में भी दिखाई दी जो उनके बाद गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।

उन्होंने कहा कि गुरु नानक साहब का जन्म कतक की पूर्णिमा को लाहौर के पास राय भोई दी तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान) में हुआ था। उनके माता-पिता कल्याण चंद दास बेदी उर्फ ​​मेहता कालू और तृप्ता थे।  पिता तलवंडी गांव के पटवारी और पेशेवर व्यापारी थे।

गुरुजी की एक बहन, बेबे नानकी, उनसे पाँच वर्ष बड़ी थी।  बेबे नानकी का विवाह  सुल्तानपुर लोधी में जय राम से हुआ था, जो लाहौर के गवर्नर दौलत खान लोधी के मोदीखाने में काम करते थे। गुरु नानक जी के अपनी बहन के प्रति स्नेह के कारण वे सुल्तानपुर में अपनी बहन और जीजाजी के घर भी रहने चले गये। वहां 20 साल की उम्र में उन्होंने दौलत खान के अधीन मोदीखाने में काम करना शुरू किया।

सिख रीति-रिवाजों के अनुसार, गुरु नानक साहिब के जन्म और प्रारंभिक जीवन की कई घटनाएं गुरु नानक की दिव्य दया को दर्शाती हैं।

उनके जीवन के बारे में लेखों में कम उम्र में उनकी उभरती बुद्धिमत्ता का विवरण दिया गया है।  ऐसा कहा जाता है कि पांच साल की उम्र में गुरु नानक ने दिव्य ग्रंथों में रुचि दिखाई। पांच वर्ष की उम्र में उनके पिता ने उस समय की प्रथा के अनुसार उन्हें स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के लिए गांव के पांडे गोपाल के यहां भर्ती करा दिया।

उन्होंने कहा कि 24 सितंबर 1487 को बाबा नानक का विवाह बटाला शहर के मूल चंद और चंदो रानी की बेटी  सुलखनी से हुआ था।  उनके दो बेटे थे, श्री चंद और लख्मी चंद।  श्री चंद ने गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं से ज्ञान प्राप्त किया और उदासी संप्रदाय के संस्थापक बने। उन्होंने कहा कि गुरु नानक साहिब जी की शिक्षाएं गुरुमुखी में दर्ज शब्दों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मिलती हैं। बाबा नानक ने जन्मसाखियाँ स्वयं नहीं लिखीं, उनके शिष्यों ने उन्हें बाद में ऐतिहासिक सटीकता के साथ लिखा।

उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी और अन्य सिख गुरुओं ने भक्ति पर जोर दिया और सिखाया कि आध्यात्मिक जीवन और धर्मनिरपेक्ष घरेलू जीवन आपस में जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि बाबा नानक की विचारधारा को तीन शिक्षाएं माना जाता है  बांट कर खाना, किरत करना और  नाम जपना। आज समय की मांग है कि बाबा नानक की शिक्षाओं से मार्गदर्शन लेकर अपने जीवन को सफल बनाया जाए।

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