"ब्रह्मज्ञानी गुरसिख सदैव ईश्वर की रजा में रहते हैं" - निरंकारी राजपिता रमित जी
"ब्रह्मज्ञानी गुरसिख सदैव ईश्वर की रजा में रहते हैं" - निरंकारी राजपिता रमित जी
बटाला,जालंधर (अविनाश शर्मा, संजीव नैयर)
संत निरंकारी सत्संग भवन, जालंधर में निरंकारी राज पिता रमित चंदना जी की उपस्थिति में भव्य निरंकारी संत समागम बड़ी श्रद्धा के साथ आयोजित किया गया। इस अवसर पर पंजाब भर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु समागम समारोह में पहुंचे और इसका भरपूर आनंद प्राप्त किया। कार्यक्रम के दौरान विभिन्न श्रद्धालुओं ने गीत, संगीत, कविता, विचार आदि के माध्यम से सत्य का संदेश दिया। इस अवसर पर निरंकारी राज पिता रमित चांदना जी ने अपने प्रवचनों में कहा कि ब्रह्मज्ञानी गुरसिख हमेशा भगवान को जानते हैं और भगवान की रजा में रहते हुए सतगुरु की शिक्षाओं का पालन करके अपना जीवन जीते हैं। उन्होंने कहा कि मन की सुंदरता शरीर की सुंदरता से ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज अक्सर अपने प्रवचनों में कहते हैं कि भक्त कुछ क्षणों का भक्त नहीं बल्कि हर समय का भक्त होता है। संसार की दृष्टि से जो जीवन जीया जा सकता है, वह तभी धन्य है, जब मनुष्य जहाँ भी जाए, संसार उसे उसके अच्छे कर्मों के कारण पहचाने। हम सांसारिक उपलब्धियों की सीढ़ी पर जितने कदम चढ़ते हैं, उससे अगली ही सीढ़ी उसका इंतजार कर रही होती है। सीढ़ी पर चढ़ना तो ठीक है, लेकिन व्यक्ति को ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके, अपने मूल निराकार को जानकर, मन से शत्रुता और नफरत व ईर्षा की दीवारों को खत्म करके गुरमत की सीढ़ी पर चढ़ना चाहिए। जब हम इन गुणों के साथ संसार में चलते हैं तो संसार के लोग हमसे प्रेम करते हैं और हमारा आदर करते हैं। हमारा खाना-पीना, उठना-बैठना धन्य हो जाता है। व्यक्ति के मन से अहंकार खत्म हो जाता है और वह अपने जीवन की असली मंजिल की ओर बढ़ने लगता है। उन्होंने संपूर्ण अवतार बानी के माध्यम से बताया कि
'गुरसिख गुरु दी अख नाल वेखे गुरु दे कन नाल सुनदा ऐ। गुरसिख ज्ञान स्रोवर विचों हीरे मोती चुन्दा ऐ।'
उन्होंने जालंधर शहर के नाम को लेकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि 'जालंधर' नाम की तरह मन के अंदर के अहंकार को जलाना होगा, अहंकार को छोड़ना होगा। अगर हमें भगवान से मिलना है तो भगवान की कसौटी पर खरा उतरना ही होगा। ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के बाद भी, यदि हम अहंकार में रहते हैं, तो हम हीरे और मोती इकट्ठा करने की बजाए कंकड़ और पत्थर ही इकट्ठा करते हैं, जिसकी कोई भी कीमत नही हैं। कई लोग केवल माया को ही सब कुछ मानते हैं, माया नाशवान है जबकि ब्रह्मज्ञान ईश्वर ही अविनाशी है। इसलिए सिर्फ भगवान का नाम लेना ही काफी नहीं है बल्कि ईश्वर को जानकर, समझकर, भगवान की पूजा भी करना है। सेवा सिमरन सत्संग करके इसकी भक्ति भी करनी है। प्रभु का प्रेम हमारे जीवन में भी बसना चाहिए। मनुष्य को जीवन प्रेम करने के लिए, प्रेम से रहने के लिए, ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के लिए मिला है।लेकिन मनुष्य अज्ञानता के कारण अपने अहंकार में जी रहा है। सतगुरु सदैव लोगों को ब्रह्म की जानकारी देकर जीवन जीने की कला सिखाते हैं। इसीलिए समय के सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ब्रह्मज्ञान के माध्यम से मनुष्य को ईश्वर का ज्ञान देकर मनुष्य का जीवन सफल बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि जीवन के सभी पहलुओं को प्रेम से भरा जा सकता है। हमें कागज के फूल नहीं बनना है बल्कि असली फूल बनकर जीवन जीना है। सतगुरु ब्रह्मज्ञान देकर जीवन को कोमलता, शीतलता, प्रेम की खुशबू से भर देते हैं और हमारा जीवन असली फूलों की तरह सभी के लिए महकने लगता है। सतगुरु साकार रूप में मनुष्य को ईश्वर का ज्ञान देकर सबको मुक्ति पद प्रदान कर देते हैं। यदि हम ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ईश्वर को समझ कर अपने मन में बिठा लें तो हम अपने जीवनकाल में ही मुक्त हो सकते हैं, अन्यथा हम बंधनों में ही फंसे रह जायेंगे। इस कार्यक्रम के अवसर पर कपूरथला जोन के जोनल इंचार्ज श्री गुलशन लाल आहूजा जी ने निरंकारी राज पिता रमित जी, सभी भक्तों और विशेष अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया और कहा कि सभी सेवादल के सदस्यों, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने अपने पूर्ण सहयोग से ही इस कार्यक्रम को सफल बनाया है। सत्संग कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरा सहयोग देने के लिए उन्होंने सबका धन्यवाद किया।
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