हिमाचल की उपेक्षा का शिकार 500 साल पुराना डमटाल मंदिर: अस्तित्व पर संकट
हिमाचल की उपेक्षा का शिकार 500 साल पुराना डमटाल मंदिर: अस्तित्व पर संकट
पठानकोट से सटे हिमाचल प्रदेश के डमटाल क्षेत्र में लगभग 500 साल पुराना किला और मंदिर आज भी मौजूद है / हिमाचल सरकार की उपेक्षा का शिकार हो रहा ऐतिहासिक स्थल / रखरखाव के नाम पर हिमाचल सरकार नहीं उठा रही कोई कदम / लगभग 500 साल पुरानी धरोहर विलुप्त होने के कगार पर
ऐतिहासिक ठाकुर राम गोपाल मंदिर और किला डमटाल अपनी जीर्ण-शीर्ण हालत पर आंसू बहा रहा है। लगभग 500 साल पुराना मंदिर उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रहा है। मंदिर का अधिकांश भाग धीरे-धीरे ढह रहा है। प्रशासन की लापरवाही के कारण मंदिर की सबसे पुरानी इमारतें ढह रही हैं। प्रशासन की लापरवाही के कारण राम गोपाल मंदिर का मुख्य द्वार भी गिर गया है, जिसे अब प्रशासन ने बंद कर दिया है। करोड़ों रुपए की संपत्ति का मालिक होने के बावजूद ठाकुर राम गोपाल मंदिर अपना अस्तित्व बचाने में लाचार नजर आ रहा है। प्रशासन हर साल मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए लाखों रुपए का बजट आवंटित करता है। स्वीकृत धनराशि कहां खर्च होती है, इसका पता किसी को नहीं है। मंदिर में कुओं और तालाबों की सफाई भी ग्राम सेवकों द्वारा ही कराई जाती है। हैरानी की बात यह है कि प्रशासन ने अपने लिए आरामदायक कार्यालय बना रखे हैं। मंदिर की हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। मंदिर में पर्यटकों की संख्या अब नगण्य हो गई है। मंदिर की ऐतिहासिक गुफाएं दयनीय स्थिति में हैं। मंदिर प्रशासन की मानें तो पुरातत्व विभाग मंदिर के विकास में बाधा बन रहा है। पुरातत्व विभाग मंदिर के टूटे हुए हिस्से का प्राचीन शैली के अनुसार जीर्णोद्धार करना चाहता है। हकीकत यह है कि ठाकुर राम गोपाल मंदिर की सुध न तो पुरातत्व विभाग ले रहा है और न ही स्थानीय प्रशासन।
जब इस संबंध में मंदिर के पुजारी से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि यह मंदिर और किला अपने आप में 500 साल का इतिहास छिपाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि पंडोरी के महंत इस स्थान पर पूजा-अर्चना करते थे और इसी दौरान एक दिन उन्होंने मवेशी चरा रहे लोगों से दूध माँगा और उनके सामने एक ऐसी गाय रखी गई जो दूध देने में सक्षम नहीं थी, लेकिन उनकी शक्ति से उस गाय ने भी दूध दिया और वह दूध उनके द्वारा वहाँ मवेशी चराने आए सभी लोगों को पिलाया गया। इसके बाद महंत की सिद्धि की चर्चा चारों ओर होने लगी और जब यह बात तत्कालीन राजा जगत सिंह के कानों तक पहुँची, तो वे भी महंत से मिलने आए और अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने महंत को बताया कि उनके घर कोई पुत्र नहीं है, जिसके बाद महंत ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इसके बाद राजा ने इस स्थान पर एक मंदिर की स्थापना की, जिसके बाद से इस मंदिर का महत्व आज तक माना जाता है। उन्होंने बताया कि इस मंदिर के नीचे एक तालाब भी बनाया गया था जहाँ लोग आज भी स्नान करके कई बीमारियों से मुक्ति पाते हैं।
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