भारत को राजाओं या सरकारों की शक्ति नहीं बल्कि तीर्थयात्रियों के कदम जोड़ते हैं : अर्जुन आनंद - Smachar

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भारत को राजाओं या सरकारों की शक्ति नहीं बल्कि तीर्थयात्रियों के कदम जोड़ते हैं : अर्जुन आनंद

भारत को राजाओं या सरकारों की शक्ति नहीं बल्कि तीर्थयात्रियों के कदम जोड़ते हैं : अर्जुन आनंद

धर्मशाला के अर्जुन ने दक्षिण अफ्रीका में पढ़ा ‘इतिहास और भारत का पुण्य क्षेत्र, भूतकाल को  देखने की भारतीय दृष्टि‘ विषय पर शोध पत्र



धर्मशाला : साउथ अफ्रीका विश्वविद्यालय के तत्वावधान में ‘स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों और प्रथाओं’ पर आयोजित चौथे अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में भाग लेते हुए धर्मशाला के अर्जुन आनंद ने ‘इतिहास और भारत का पुण्य क्षेत्र, भूतकाल को देखने की भारतीय दृष्टि‘ विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। दक्षिण अफ्रीका में आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में विश्व के विभिन्न देशों से आए शोधार्थियों ने अपने देश की ज्ञान प्रणालियों और प्रथाओं से संबंधित शोध पत्र प्रस्तुत किए।

कांफ्रेंस में अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए अर्जुन ने अपनी अयोध्या यात्रा का उद्धरण देते हुए बताया कि हाल ही में अयोध्या के दशरथ महल में जब वे गए तो उनके साथी ने उन्हें बताया कि यहां भगवान श्रीराम का शाही दरबार लगता था। तभी पास खड़े एक अनजान बुजुर्ग सज्जन ने कहा कि ‘श्रीराम आज भी यहीं हैं, उनका शाही दरबार आज भी यहां लगता है।’ अर्जुन ने बताया कि भारतीय मानस के लिए कृष्ण या राम या शिव-पार्वती कोई भूतकाल नहीं है, बल्कि अनंत वास्तविकताएं हैं, जो समझ से परे हैं।

भारतीय मानस के लिए यह इतिहास पुरुष नहीं अपितु अनंत काल के लिए भाव-पुरुष बन जाते हैं। हम कृष्ण या राम के जन्मदिन नहीं मनाते। बल्कि हम हर रामनवमी और कृष्ण जन्माष्टमी पर उनके जन्म का अनुभव करते हैं। त्योहारों, अनुष्ठानों, कला रूपों और सबसे महत्वपूर्ण तीर्थयात्राओं के माध्यम से अपने भाव-पुरुषों के बीच रहकर, हम अनंत, आध्यात्मिक और शाश्वत के साथ एकात्मता का एहसास करते हैं, जो समय की सीमा से परे है। इस तरह, भूतकाल ऐतिहासिकता के बंधन से मुक्त हो जाता है। उन्होंने बताया कि भारत को राजाओं या सरकारों की शक्ति नहीं बल्कि यहां सैंकड़ों वर्षों से चल रहे तीर्थयात्रियों के कदम जोड़ते हैं। तीर्थयात्रियों का भारत कई सौ वर्षों तक फैला हुआ है और यह हमारे सामने देश की एक आश्चर्यजनक छवि प्रस्तुत करता है।

सदियों से एक सभ्यतागत सूत्र से जुड़े होने के कारण भारत एक पुण्यभूमि है। भारतीय लोग, ज्ञान परम्पराएं और विद्वत्ता सदियों से उस सभ्यतागत सूत्र के बारे में जानते रहे हैं, जिसने हिमालय से लेकर दक्षिण में महासागर तक की भूमि को एक समग्र पुण्यभूमि के रूप में स्थापित किया है। यहाँ हम आज भी अपने इष्ट के साथ, उनकी छत्रछाया में रहते हैं।

बता दें, अर्जुन आनंद धर्मशाला के गांव चैतड़ू के रहने वाले हैं। उन्होंने राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला से स्नातक और हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय से एमफिल की पढ़ाई की है। अर्जुन अभी ज्वाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से अपनी पीएचडी कर रहे हैं। वे भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) के सहयोग से इस अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस के लिए दक्षिण अफ्रीका गए हैं।

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