गंड मूल नक्षत्र का जानें जाप व क्या है गंड मूल नक्षत्र - Smachar

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गंड मूल नक्षत्र का जानें जाप व क्या है गंड मूल नक्षत्र

गंड मूल नक्षत्र का जानें जाप व क्या है गंड मूल नक्षत्र 


 27 वें दिन जब गंड-मूल नक्षत्र दोबारा आए उस दिन संबंधित नक्षत्र और नक्षत्र स्वामी के मंत्र जप, पूजा व शांति करा लेनी चाहिए। इनमें से जिस नक्षत्र में शिशु का जन्म हुआ इस नक्षत्र के निर्धारित संख्या में जप-हवन करवाने चाहिएं।

राशि चक्र में ऐसी तीन स्थितियां होती हैं, जब राशि और नक्षत्र दोनों एक साथ समाप्त होते हैं। यह स्थिति ‘गंड नक्षत्र’ कहलाती है। इन्हीं समाप्ति स्थल से नई राशि और नक्षत्र की शुरूआत होती है। लिहाजा इन्हें ‘मूल नक्षत्र’ कहते हैं। इस तरह तीन नक्षत्र गंड और तीन नक्षत्र मूल कहलाते हैं। गंड और मूल नक्षत्रों को इस प्रकार देखा जा सकता है :  


कर्क राशि व अश्लेषा नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं। यहीं से मघा नक्षत्र और सिंह राशि का उद्गम होता है। अश्लेषा गंड और मघा मूल नक्षत्र है।



वृश्चिक राशि व ज्येष्ठा नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं, यहीं से मूल नक्षत्र और धनु राशि की शुरूआत होने के कारण ज्येष्ठा ‘गंड’ और ‘मूल’ का नक्षत्र होगा।



मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त होकर यहीं से मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की शुरूआत होने से रेवती, गंड तथा अश्विनी मूल नक्षत्र कहलाते हैं।



उक्त तीन गंड नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का स्वामी ग्रह बुध है तथा तीन मूल नक्षत्र मघा, मूल व अश्विनी का स्वामी ग्रह केतु है।


गंड मूल नक्षत्र शांति मंत्र

अश्विनी नक्षत्र (स्वामित्व अश्विनी कुमार) : ॐ अश्विनातेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वतीवीर्यम। वाचेन्द्रोबलेनेंद्राय दधुरिन्द्रियम्। ॐ अश्विनी कुमाराभ्यां नम:।। (जप संख्या 5,000)।  



अश्लेषा (स्वामित्व सर्प): ॐ नमोस्तु सप्र्पेभ्यो ये के च पृथिवी मनु: ये अन्तरिक्षे ये दिवितेभ्य: स्प्र्पेभयो नम:।। ॐ सप्र्पेभ्यो नम:।। (जप संख्या 10,000)।



मघा (स्वामित्व पितर): ॐ पितृभ्य: स्वाधयिभ्य: स्वधानम: पितामहेभ्य स्वधायिभ्य: स्वधा नम:। प्रपितामहेभ्य: स्वधा नम: अक्षन्नापित्रोमीमदन्त 

पितरोऽतीतृपन्तपितर: पितर: शुन्धध्वम्।। ॐ पितृभ्यो नम:/पितराय नम:।। (जप संख्या 10,000)।  



ज्येष्ठा (इन्द्र) : ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे हवे सुह्न शूरमिन्द्रम् हृयामि शुक्रं पुरुहूंतमिन्द्र स्वस्तिनो मधवा धाक्षित्वद्र:।। ॐ शक्राय नम:।। (जप संख्या 5,000)।



मूल (राक्षस) : ॐ मातेव पुत्र पृथिवी पुरीष्यमणि स्वेयोनावभारुषा। तां विश्वेदेवर्ऋतुभि: संवदान: प्रजापतिविश्वकर्मा विमुच्चतु।। ॐ निर्ऋतये नम:।। (जप संख्या 5,000)।



रेवती (पूषा) : ॐ पूषन् तवव्रते वयं नरिष्येम कदाचन स्तोतारस्त इहस्मसि।। ॐ पूष्णे नम:। (जप संख्या 5,000)।   



गंड नक्षत्र स्वामी बुध के मंत्र

ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्ठापूर्ते संसृजेथामयं च अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत।’ के नौ हजार जप कराएं। दशमांश संख्या में हवन कराएं. हवन में अपामार्ग (ओंगा) और पीपल की समिधा काम में लें।



मूल नक्षत्र स्वामी केतु के मंत्र

ॐ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मय्र्याअपेशसे समुषभ्दिजायथा:।।’ के सत्रह हजार जप कराएं और इसके दशमांश मंत्रों के साथ दूब और पीपल की समिधा काम में लें।

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