मनेई-डिब्बर रोड़ के लिए 1992 से मात्र हुए सर्वे,नहीं बन पाई सड़क।
मनेई-डिब्बर रोड़ के लिए 1992 से मात्र हुए सर्वे,नहीं बन पाई सड़क।
शाहपुर : जनक पटियाल /
2014 से हो रही एफआरए क्लियरेंस के नाम और बनाया जा रहा बेबकुफ़
जहां लोगों ने अपनी जमीनें विभाग के नाम की ,विभाग वहां भी सड़क बनाने में असफल।
जहां एक ओर सरकारों द्वार घर द्वारा सड़के पहुंचाने का दावा किया जाता है वहीँ शाहपुर विधानसभा का एक गांव डिब्बर जो आज भी मूलभूत सुविधाओं से परे है। ये हम नहीं बल्कि वो लोग व स्कूली बच्चे कह रहे हैं जो रोजाना 2 किलोमीटर ऊंची चढ़ाई चढ़कर अपने गंतव्यों तक पहुंचते है।कई सरकारें आई और चली गई लेकिन मनेई-डिब्बर सड़क बनाने में फेल साबित हुई हैं। लगातार शाहपुर में भाजपा ने भी अपना वर्चस्व कायम रखा। लेकिन आजतक केवल इन लोगों के साथ केवल राजनीति हुई है। आपको बता दें कि 1992 से मनेई-डिब्बर सड़क के सर्वे किए जा रहे हैं लेकिन आज तक सड़क केवल सर्वों में ही फंसी रही उससे बढ़कर कोई काम नहीं हुआ। हालांकि पिछली सरकार के कार्य काल मे इस रास्ते के एक छोर पर काम शुरू हुआ और तकरीबन 1 किलोमीटर रास्ता बनना था। लेकिन विभाग व ठेकेदार की लापरवाही से ये रास्ता भी 600 मीटर ही बन पाया। सडक निर्माण के लिए लोगों ने अपनी जमीनें भी दे रखी हैं लेकिन 400 मीटर के लगभग रास्ता कच्चा ही छोड़ दिया गया। अब हालात ऐसे हैं कि वारिशों से आगे का रास्ता दलदल युक्त हो गया है जिस ओर वाहन चलाना तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल है।ग्रामीणों ने कहा कि इस बारे में विभाग से कई दफा बता चुके हैं लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई।विभाग बजट न होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेता है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में ऐसे मरीज है जिनको चारपाई ओर उठाकर पक्की सड़क तक पहुंचना पड़ता है।उंन्होने बताया कि मनेई डिबबर सड़क न होने के कारण हमें राशन डिपो, पशु चिकित्सालय , पंचायत या जलशक्ति कार्यालय जाने के लिए 15 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर तय करना पड़ता है। उन्होंने लोक निर्माण विभाग मंत्री विक्रमादित्य सिंह,विधायक केवल पठानिया से गुहार लगाई है कि जल्द से जल्द मनेई -डिबबर रोड़ को बनाया जाए।
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