आइए जानें करवा चौथ व्रत की कथा व विधि
आइए जानें करवा चौथ व्रत की कथा व विधि
करवा चौथ पर्व पर भगवान गणेश, मां गौरी और चंद्रमा की पूजा की जाती है. इसके लिए शुभ मुहूर्त रविवार शाम 5 बजकर 46 मिनट से 7 बजकर 02 मिनट तक रहेगा. करवा चौथ पूजन की सही विधि क्या है ये भी हम आपको बता रहे हैं.
स्वच्छ चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर गौरी मां की मूर्ति स्थापित करने के साथ ही जल से भरा करवा और दीपक रखा जाता है.
दीपक जलाने के बाद करवा पर रोली, अक्षत, सिंदूर व फूल अर्पित करने के बाद करवा चौथ की कथा सुनी जाती है.
करवा चौथ व्रत कथा सुनते या पढ़ते समय भी आपको अपने हाथ में जल और अक्षत लेकर बैठना चाहिए.
इसके बाद रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद उन्हें जल अर्पित कर अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है.
इसके बाद सुहागिन महिला को पति की लंबी आयु व सुख-समृद्धि की कामना करते हुए उन्हें भी अर्घ्य देना चाहिए.
अर्घ्य देने के बाद सुहागिन महिला को अपने पति के हाथ से पानी पीकर और कुछ खाकर व्रत का पारण करना चाहिए.
करवा चौथ का बत व पूजन विधि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ कहते हैं। इसमें गणेश जी का पूजन करके उन्हें पूजन वाल से प्रसन्न किया जाता है। इसका विधान चैत्र की चतुर्थी में लिख दिया है। परन्तु विशेषता यह है कि इसमें नेई का करवा भरके पूजन किया जाता है और विवाहित लड़कियों के यहाँ चीनी के करने पीहर से भेजे जाते हैं। तथा इसमें निम्नलिखित कहानी सुनकर चन्द्रोदय में अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। करवा चौथ व्रत की कथा -
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था, रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो, उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा।
इस पर बहन ने उत्तर दिया भाई अभी चाँद नहीं निकला है उसके निकलने पर अर्घ्य देकर भोजन करूँगी। बहन की बात सुनकर भाइयों ने क्या काम किया कि नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने बहन से कहा-बहन ! चाँद निकल आया है अर्घ्य देकर भोजन खा लो।
यह सुन उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्य दे तो, परन्तु वे इस काण्ड को जानती थी, उन्होंने कहा बाईजी अभी चाँद नहीं निकला, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं। भाभियों की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान न दिया व भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया। जब उसे अपने किए दोषों का पता लगा तो उसने पश्चताप किया। गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया और श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया।
इस प्रकार उसके श्रद्धा-भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान देकर उसे आरोग्य करने के पश्चात् धन सम्पत्ति से मुक्त कर दिया। इस प्रकार की कोई छल कपट को त्याग कर श्रद्धा भक्ति से चतुर्थी का बत करेंगे वे सब प्रकार से सुखी होते हुए क्लेशों से मुक्त हो जायेंगे।
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