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हिमाचल से फ्रेमेंटल, ऑस्ट्रेलिया तक देशी ऊन का सफर

 हिमाचल से फ्रेमेंटल, ऑस्ट्रेलिया तक देशी ऊन का सफर

कुल्लवी व्हिम्स ने दी देसी ऊन को वैश्विक प्रसिद्धि 


कुल्लू : ओम बौद्ध /

 यह केवल कुल्लवी व्हिम्स के लिए नहीं, बल्कि हिमाचल के हर कारीगर, हर गाँव, और हर उस महिला के लिए गर्व का एक यादगार पल है कि राज्य की देसी ऊन अब हिमाचल की वादियों से निकलकर ऑस्ट्रेलिया पहुंच कर अपनी पहचान बना रही है। दरअसल कुल्लू की स्वयं सहायता समूह कुलवी व्हीम्स की निपुण कारीगरों द्वारा ऑस्ट्रेलिया में हिमाचली ऊन से बने पारंपरिक वस्त्रों की कार्यशाला आयोजित की गई। जिसे विदेशी धरती पर बहुत तारीफ मिली।

 8 से 22 जून 2025 के बीच, The Anjelms Project द्वारा फ्रेमेंटल, ऑस्ट्रेलिया में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में कुल्लू की लता और सपना एक वर्कशॉप के लिए ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में गई। जहां पर उन्होंने संस्था के सह-संस्थापक बृघु राज आचार्य और निशा सुब्रमणियम के साथ हिमाचल की देसी ऊन और इससे बने पारंपरिक वस्त्रों की प्रदर्शनी लगाई गई। जिसमें ऑस्ट्रेलिया ही नहीं अंतरराष्ट्रीय दर्शकों द्वारा काफी रुचि दिखाई गई। कार्यशाला में पारंपरिक औज़ारों द्वारा कताई, बुनाई, बुनकर कार्य, फेल्टिंग और प्राकृतिक रंगाई की तकनीकें दिखाई गईं। 

 कल्लू की रहने वाली कारीगर लता और सपना जो इस कार्यशाला में प्रतिनिधित्व करने पहुंची थी, उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए। और कहा कि हमने कभी नहीं सोचा था कि हम अपने गाँव से बाहर निकलेंगे, वो भी ऊन और बुनाई के कारण। यह सिर्फ एक यात्रा नहीं बल्कि एक सपना है, जो साकार हो रहा है। कार्यशाला में पहुंचे ऑस्ट्रेलिया के दर्शकों ने भी इस कार्यशाला को खूब सराहा। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में पहुंचकर उन्हें बहुत अच्छा लगा। उन्हें यहां कुल्लू की स्थानीय कलाकारों से कुलवी तरीके से वस्त्रों की बुनाई सीखने का मौका मिला, जो उनके लिए बहुत आनंददायक और यादगार अनुभव रहे। 

कुल्लवी व्हिम्स संस्था के संस्थापक निशा सुब्रमियम और सह-सस्थापक बृघु आचार्य मैं ऑस्ट्रेलिया में आयोजित इस कार्यशाला को लेकर अपने विचार रखे। दोनों का ही कहना है कि उन्हें इतनी उम्मीद तो थी कि हिमाचल प्रदेश के पारम्परिक ऊनी वस्त्रों को विदेशी धरती पर पसंद किया जाएगा। लेकिन, जिस तरह से विदेश की धरती में वहां के लोगों ने इस कार्यशाला को लेकर उत्साह दिखाया है, वह काबिले तारीफ है। उनका कहना है कि वहां पर स्थानीय लोगों ने हर बार इस तरह की कार्यशाला के आयोजन का आगरा है वर्कशॉप के सदस्यों से किया। ताकी हिमाचल के पारंपरिक वस्त्रों को लेकर विदेश में भी लोगों को अधिक से अधिक जानकारी मिल सके।

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