घर न होते, गृहस्थ न होते तो सन्यासी भी भिक्षा कहां से पाते :पूज्य पुनीत गिरि
घर न होते, गृहस्थ न होते तो सन्यासी भी भिक्षा कहां से पाते :पूज्य पुनीत गिरि
आज दिनांक 05 जून को शिव महापुराण कथा में पूज्य संत शिरोमणि पुनीत गिरि जी ने जिज्ञासुओं के साथ द्वितीय दिवस में मुख्य रूप से मानव की क्षमताओं के बारे में तत्व ज्ञान पर प्रवचन साझा किया । उनके शब्दों में संत शिरोमणि पुनीत गिरि ने उपदेश किया कि क्षमताओं के संदर्भ में स्वर्ग के देवता भी मानव से कम हैं । उन्होंने बताया स्वर्ग का शाब्दिक और भावार्थ है कि जहां भोग और भोग का सुख है लेकिन आनंद को पाने की परस्थिति केवल और केवल मानव के ही पास है बस उसे आवश्यकता है तो ज्ञान के चक्षुओं को खोलने की । संत शिरोमणि पुनीत गिरि आज की तिथि में ऐसे विशेष संत हैं जो शब्दों के भावार्थ और मिथकों के सांकेतिक अर्थों का स्टीक ज्ञान देते हैं । बुद्ध का उदाहरण देते हुए संत शिरोमणि पुनीत गिरि ने प्रवचन किया कि बुद्ध उदाहरण हैं जिन्होंने पूर्ण आनंद को प्राप्त किया, जबकि यह स्वर्ग के भोगी देवता भी नहीं पा सकते । क्योंकि भोग से कुछ सुखमात्र ही मिलता है जबकि वे आनंद को पाने के लिए अक्षम हैं । केवल मानव ही ऐसा जीव है ।
गृहस्थ की महिमा और महत्व बताते हुए पूज्य पुनीत गिरि ने प्रवचन किया कि यदि घर न होते, यदि गृहस्थ न होते तो सन्यासी भी भिक्षा कहां से पाते । गृहस्थ में रहकर मानव को उपभोग धारण करते हुए अपने जीवन को साकार करना है ।
दूसरे दिन शिव महापुराण कथा समागम में पिछले कल से दोगुनी संगत ने इस पुण्य कथा प्रवचन के श्रवण का आनंद और लाभ लिया।
न्यास सचिव सच्चिदानंद शास्त्री ने आगामी कार्यक्रम की रूपरेखा साझा करते हुए बताया कि जल्द पूज्य संत शिरोमणि पुनीत गिरि जी के आशीर्वचन एक आध्यात्मिक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो रहे हैं जिसका शीर्षक "पुष्पांजलि" है । जिज्ञासु और साधक इसका लाभ अवश्य उठाएंगे । इसके प्रकाशन का कार्य दार्शनिक साहित्यकार पंकज दर्शी कर रहे हैं और इसके संकलन और संपादन के मुख्य कार्य न्यास प्रधान डॉ रमेश अवस्थी और कवि नवीन विस्मित द्वारा किया गया है । सप्ताह के भीतर ही पुस्तक का विमोचन कथा समागम के समारोह 11 जून को किया जाएगा ।
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