दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम में विशाल भंडारा सत्संग कार्यक्रम हुआ आयोजित - Smachar

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दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम में विशाल भंडारा सत्संग कार्यक्रम हुआ आयोजित

मनुष्य इस संसार में कर्म करता हुआ, अपने स्वरूप को अपनी आत्मा को संचालित करने वाली परम शक्ति से जोड़कर वह आसानी से भवसागर से पार हो सकता है : स्वामी दिनकरानंद जी





( बटाला : अविनाश, संजीव, चरण सिंह ) 

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा पुलिस लाइन रोड बटाला के स्थानीय आश्रम में विशाल भंडारा सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य स्वामी दिनकरानंद जी ने कहा कि प्रकृति एक खुली किताब है। परंतु इस पुस्तक को केवल  ब्रह्मज्ञानी ही पढ़ा सकता है। क्योंकि इसकी संपूर्ण सृष्टि ब्रह्म द्वारा रचित है। उस ब्रह्म की हर रचना हमें कुछ न कुछ समझा रही है, बस उसे समझने वाला ही चाहिए। यदि मनुष्य ईश्वर की इस रचना को जानना और समझना चाहता है तो सबसे पहले उसे स्वयं को जानना होगा। आज हर इंसान की परेशानी का एक ही कारण है कि इंसान अपनी पहचान भूल गया है। जब मनुष्य स्वयं को जान लेगा तो प्रकृति की प्रत्येक रचना उसके लिए प्रेरणा का स्रोत बन जायेगी। क्योंकि प्रत्येक रचना में भगवान स्वयं  बैठकर हमें कुछ समझाने का इशारा कर रहे हैं। जैसे कमल का फूल कीचड़ में उगता है और कीचड़ से ही अपना पोषण लेता है। लेकिन इतनी गंदी जगह पर रहते हुए भी वह खुद को हमेशा कीचड़ से ऊपर और अलग रखता है। वह हमेशा सूर्य से जुड़ा रहता है, जिसके कारण वह अपनी सुंदरता और सुगंध से सभी को प्रसन्न करता है। वह हमें यही संदेश दे रहा है कि यदि मैं लाखों मील दूर अपने मूल सूर्य से जुड़ सकता हूं, तो क्या आप मनुष्य अपने भीतर बैठे उस प्रभु से नहीं जुड़ सकते, जो आपका वास्तविक मूल है? इसी प्रकार पानी में रहने वाली मुर्गाभी अपना भोजन पानी से ही प्राप्त करती है। परन्तु उस पानी से अपने पंखों को भीगने नहीं देता और जब दिल करता है तो उड़ जाता है। लेकिन मानवीय अज्ञानता के कारण यह माया की कीचड़ से गंदा हो गया है। इस गंदगी से मनुष्य को परेशानी हो रही है।

स्वामी जी ने कहा कि यह संसार दुखों का सागर है। यदि कोई व्यक्ति इसे पार करना चाहता है तो उसे कीचड़ में भी कमल के फूल की तरह अनासक्त रहना होगा।  उसी प्रकार मनुष्य इस संसार में कर्म करता हुआ, अपने स्वरूप को अपनी आत्मा को संचालित करने वाली परम शक्ति से जोड़कर वह आसानी से भवसागर से पार हो सकता है। कार्यक्रम के दौरान स्वामी विनयानंद जी एवं स्वामी बलदेव जी ने सु मधुर भजनों का गायन किया। कार्यक्रम के अंत में प्रसाद रूप में लंगर का वितरण किया गया।

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