माँ बज्रेश्वरी देवी के घृत लेप और श्रृंगार से शुरू हुआ "घृत पर्व" - Smachar

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माँ बज्रेश्वरी देवी के घृत लेप और श्रृंगार से शुरू हुआ "घृत पर्व"

माँ बज्रेश्वरी देवी के घृत लेप और श्रृंगार से शुरू हुआ "घृत पर्व"

कांगड़ा:- माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी सात दिवसीय जिला स्तरीय घृत पर्व मंगलवार से शुरू हो गया। मंगलवार को माता जी की पावन पिंड़ी पर मक्खन का लेप लगाने की ऐतिहासिक पंरपरा शुरू हो गई। सुबह तीन बजे तक माता की पिंड़ी पर मक्खन के लेप और श्रृंगार का कार्य चला।  उसके बाद सुबह की पूजा अर्चना व आरती के बाद श्रद्धालुओं ने मां की पावन पिंड़ी पर हुये मक्खन के श्रृंगार के दर्शन कर किए। हालांकि इस बार जिला स्तरीय घृत पर्व को बड़े आयोजन के रूप में मनाया जा रहा है। कांगड़ा नगर परिषद मैदान में 4 से 18 जनवरी तक चलने वाले मेले के रूप में इस आयोजन की शुरूआत हो चुकी है। 

कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां सती का वाम वक्ष गिरा था। यहां कई शताब्दियों से चली आ रही ऐतिहासिक धार्मिक परंपरा घृत पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। शक्तिपीठ माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर के सबसे बड़े पर्व को लेकर माता का दरबार श्रद्धालुओं की भीड़ से जहां भर गया है वहीं माता की पिंडी पर होने वाले मक्खन के श्रृंगार को देखने के लिए सैंकड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। मकर संक्रांति का दिन होने के कारण भी गुरूवार को मंदिर में श्रद्धालुओं की भरी भीड़ उमड़ी।  

ऐतिहासिक धार्मिक उत्सव को लेकर श्री बज्रेश्वरी माता मंदिर की विशेष सजावट की गई है। कई शताब्दियों से चले आ रहे इस पर्व में श्रद्धालु अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते हैं। मकर संक्रांति से लेकर एक सप्ताह तक पिंडी के ऊपर कई क्विंटल मक्खन का लेप चढ़ाया जाता है। माघ मास की मकर संक्रांति के दिन से आरंभ होने वाले इस विशेष आयोजन पर मां बज्रेश्वरी मंदिर व बर्फ से ढकी धौलाधार की चोटियों की मनोहारी छटा माहौल को अद्भुत बना देती है। देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अद्भुत आयोजन का दर्शन करने कांगड़ा पहुंचते हैं।

इस विशेष घृत मंडल के आयोजन के उद्देश्य के संबंध में कहा जाता है कि जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर अनेक चोटें आई थीं तथा देवताओं ने माता के शरीर पर घृत का लेप किया था। उसी परंपरा के अनुसार देसी घी को एक सौ एक बार शीतल जल से धोकर उसका मक्खन बनाकर माता जी कि पिंडी पर चढ़ाया जाता है। इस घी के ऊपर नाना प्रकार के मेवे और फल मेवों की मालाएं सुसज्जित की जाती है।

घृत सात दिनों तक माता की पिंडी पर चढ़ा रहता है। उसके पश्चात इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। लोगों में धारणा है कि यह मक्खन एक विशेष ओषधि का काम करता है। मंदिर के पुजारी पंडित सदन शर्मा के अनुसार इस मक्खन को घावों, फोड़े आदि पर लगाने से उनका उपचार हो जाता है।

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