तबाही के बीच भी अडिग आस्था: मणिमहेश में राधाअष्टमी पर डल तोड़ने की रस्म निभाने रवाना हुए संचुई के चेले - Smachar

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तबाही के बीच भी अडिग आस्था: मणिमहेश में राधाअष्टमी पर डल तोड़ने की रस्म निभाने रवाना हुए संचुई के चेले

तबाही के बीच भी अडिग आस्था: मणिमहेश में राधाअष्टमी पर डल तोड़ने की रस्म निभाने रवाना हुए संचुई के चेले

चंबा : जितेन्द्र खन्ना /

जिला चंबा इन दिनों लगातार हो रही भारी बारिश और भूस्खलनों की मार झेल रहा है। जगह-जगह सड़कें बाधित हैं, ग्रामीणों और श्रद्धालुओं का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और प्रशासन लगातार राहत व बचाव कार्यों में जुटा हुआ है। चारों ओर तबाही और चिंता का माहौल है, लेकिन इस कठिन दौर में भी आस्था और परंपरा डगमगाई नहीं।


आस्था की मिसाल


राधाअष्टमी के पावन अवसर पर संचुई गाँव के चेले सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करने के लिए पवित्र मणिमहेश डल झील की ओर रवाना हो गए हैं। हर वर्ष की भांति इस बार भी वे विपरीत परिस्थितियों को चुनौती देते हुए डल तोड़ने की रस्म निभाने जा रहे हैं।


रस्म का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व


मान्यता है कि राधाअष्टमी के दिन संचुई गाँव के चेले विशेष पूजा-अर्चना के साथ डल झील में उतरकर डल तोड़ने की रस्म पूरी करते हैं। इसी के साथ मणिमहेश यात्रा का औपचारिक समापन होता है। कहा जाता है कि जब तक यह रस्म पूरी नहीं होती, तब तक यात्रा अधूरी मानी जाती है। यही कारण है कि चाहे मौसम कितना भी विकट क्यों न हो, यह परंपरा कभी नहीं टूटी।


परंपरा का अटूट निर्वहन


ग्रामीणों का कहना है कि यह रस्म केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक धरोहर है। स्थानीय लोग मानते हैं कि इस परंपरा के निर्वहन से यात्रा का धार्मिक महत्व पूर्ण होता है और अगले वर्ष की यात्रा के लिए शुभ संकेत प्राप्त होते हैं। यही वजह है कि हर परिस्थिति में संचुई के चेले इस रस्म को निभाने निकल पड़ते हैं।


आपदा के बीच साहसिक कदम


इस बार भूस्खलन और बारिश से हालात बेहद कठिन हैं। कई मार्ग अवरुद्ध हैं और प्रशासन लोगों को सुरक्षित निकालने में व्यस्त है। बावजूद इसके, संचुई के चेलों ने अपने साहस और आस्था का परिचय देते हुए कठिनाइयों को पार कर यात्रा शुरू की। श्रद्धालुओं और ग्रामीणों का कहना है कि


आस्था से मिली संबल


इस रस्म की चर्चा न केवल चंबा बल्कि पूरे हिमाचल में होती है। धार्मिक विद्वानों का मानना है कि ऐसी परंपराएं आपदा और विपत्ति के बीच भी लोगों के मनोबल को मजबूती देती हैं। आस्था से जुड़ा यह सामूहिक विश्वास ही हिमालयी संस्कृति की सबसे बड़ी पहचान है।

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