खालसे की चढदी कला का प्रतीक होला-महल्ला का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया
पंजाब चंडीगढ़ जर्नलिस्ट एसोसिएशन के पत्रकारों द्वारा *होली कीन संत सेव ।। रंग लागाअत्यंत लाल देव ।। * खालसे की चढदी कला का प्रतीक होला-महल्ला का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया
बटाला 26 मार्च (अविनाश शर्मा, संजीव नैयर)
पंजाब चंडीगढ़ जर्नलिस्ट एसोसिएशन के पत्रकारों द्वारा
होली कीनी संत सेवा ।। रंग लागा अत्यंत लाल देव. खालसा के चढदी कला का प्रतीक होला महल्ला का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। पत्रकारों ने एक-दूसरे को रंग लगाकर और भांगड़ा डालकर होली मनाई। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की रचना के साथ इस त्योहार की शुरुआत की थी ठीक 19 वर्षों पहले वर्ष 1680 ई. में आनंदपुर साहिब के पवित्र स्थान किला होलगढ़ साहिब से की थी । उन्होंने अपनी उपस्थिति में होला महल्ला खेलने की प्रथा शुरू की। होला और महल्ला दोनों शब्द फ़ारसी हैं। होला का अर्थ है आक्रमण करना और महल्ला का अर्थ है आक्रमण करने का स्थान। दशम पिता जी ने सिखों का मनोबल बढ़ाने, मार्शल आर्ट में कुशल अत्याचारियों से लड़ने, गुरु नानक देव जी द्वारा होली खेलने से निर्मित आत्म रस की नींव पर बीर रस का महल बनाने के लिए होला महल्ला खेलना शुरू किया। इस अवसर पर, प्रेस यूनियन के संरक्षक सुभाष सहगल, जिला अध्यक्ष डॉ. हरपाल सिंह, पंजाब उपाध्यक्ष भूपिंदर सिंह सोढ़ी, जिला गुरदासपुर अध्यक्ष संजीव नैयर, शहरी अध्यक्ष इंदर मोहन सिंह सोढी, उपाध्यक्ष प्रिंस सहगल, उपाध्यक्ष बलदेव सिंह खालसा अशोक जरेवाल, सुनील बटालवी राघव सहगल, नीरज शर्मा आदि मौजूद रहे ।
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