1972 की एक ऐसी त्रासदी जिसको 20722 परिवार आज तक झेल रहे हैं: संजीव कुमार - Smachar

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1972 की एक ऐसी त्रासदी जिसको 20722 परिवार आज तक झेल रहे हैं: संजीव कुमार

1972 की एक ऐसी त्रासदी जिसको 20722 परिवार आज तक झेल रहे हैं: संजीव कुमार

ज्वाली समाचार

भरमाड़ (राजेश कतनौरिया):-  हिमाचल प्रदेश सरकार की असमर्थता  के चलते पौंग बांध  पलायन कर्ता परिवारों के साथ अन्याय और उत्पीड़न का दर्द  सह रहे पौंग  बांध पलायन कर्ताओं को आज तक न्याय कि तलाश है। यह बात आज पलायन कर्ता परिवार के सदस्य संजीव कुमार धमेटा निवासी ने भरमाड़ में प्रैस वार्ता के दौरान की। उन्होंने कहा कि  बर्ष 1972 की एक ऐसी त्रासदी जिसको 20722 परिवार आज तक झेल रहे हैं।

बात तब की है जब मैं 4 साल का था, एका एक तीन सरकारों ने 20722 परिवारों को घर से बेघर कर दिया। फरमान था कि 20722 परिवार अपना घर छोड़ राजस्थान जाएं। उनको वहां पर घर, हस्पताल, सड़क और सारी  जरुरी सुविधाएं दी जाएंगी। यह फरमान जारी किया भारत सरकार, हिमाचल सरकार और राजस्थान  सरकार ने , लोगों  को जबरन नाम मात्र मुआवजा देकर घर से बेघर कर दिया गया।

कांगड़ी पौंग बांध झील एरिया से लोग पलायन के लिए मजबूर थे, उनके लिये एक रिज़र्व लैंड एरिया था। जिसको उनके लिए सुरक्षित रखा गया था। सुबिधा के नाम पर न पिने का पानी, न स्कूल, न हस्पताल। सभी कांगड़ी लोग  गन्दा पानी पिने को मंजूर थे। बच्चे स्कूल से बंचित थे। इन पलायन कर्ताओं ने अपने पसीने से राजस्थान की भूमि को फसल योग्य बनाया। 20 साल बाद 1992 में  राजस्थान की सरकार ने एक म्यादि सीमा जो की बीस बर्ष थी, को बढ़ा कर 25 बर्ष कर दी गया। ताकि पलायन करता जमीन का हक़ हासिल न कर सकें।

स्थानीय लोंगो को चंद सिस्कों में दे दी खानापूर्ति के लिए स्थानीय अदालतें जय सिंह नगर और गंगाननगर में लगाकर मुरव्वों (जमीनों ) जो कि कांगड़ी पलायन कर्ताओं की थी सरकार की घोषित कर दी गयीं। परन्तु स्थानीय कब्जाधारी आज भी वहीं काबिज हैं और कांगड़ी पलायन  कर्ताओं का हक़ खा रहे है आलम ये था कि अगर कांगड़ी  पलायन करता लघु शंका भी जाता तो उसका मुरब्बा (जमीं) निरस्त कर दी जाती। इस दौरान  कांगड़ी  पलायन कर्ताओं को बन्दूक  की नोक पर राजस्थान  से भगा दिया गया। जिसने अपनी जमीन  छोड़ने से मना किया उसकी हत्या कर दी गई। काफी लोग इस दौरान अपनी जान से हाथ धो बैठे।

फिर भी न तो भारत सरकार और न ही हिमाचल प्रदेश सरकार की नींद खुली, राजस्थान  सरकार तो स्थानीय लोगों के साथ इस अन्याय में बराबर की सांझीदार थी। ये सब उस समय मे हुआ जब हिमाचल प्रदेश में माननीय मुख्यमंत्री शांता कुमार की और राजस्थान में  माननीय भैरों  सिंह शेखावत जी की सरकार थी।

दूसरे चरण का आबंटन आरक्षित भूमि को छोड़ कर कहीं और जैसलमेर के रामगढ़  और मोहनगढ़  इलाके में  करना भी कांगड़ी पलायन कर्ताओं के साथ एक और धोखा है। क्यूंकि  वहां पर न तो पिने का पानी , न हस्पताल और न ही अन्य कोई जरुरी सुविधा  प्राप्त हो रही है। जब ये तय था की कांगड़ी पलायन कर्ताओं  को मुरव्वा (जमीन) गंगा नगर में  आरक्षित है तो ये दूसरा बड़ा  अन्याय क्यों।

एक  हाई पावर कमेटी  का गठन हुआ जिसने कांगड़ी पलायन कर्ताओं की किसी भी तरह की कोई सहायता नहीं की। सर्वे हुए और फाइलों में  ही पड़े रह गए। जमीन पर  कुछ भी न हुआ और होने की उम्मीद है भी नहीं।

कांगड़ी पलायन कर्ताओं के उत्थान के लिए एक हिमाचल सरकार का फण्ड है - (Pong Dam development Authourity)  जिसका न जाने कहाँ उपयोग हो रहा है। मैंने अपने 55 साल की लाइफ में इसका उपयोग किसी कांगड़ी  पलायन कर्ता  के उत्थान में होते हुए नहीं देखा।

खानापूर्ति के लिए (DC R & R Raja ka Talab- Tehsil Fatehpur, Distt Kangra- HP)  को राजा का तालाब में  बिठा दिया गया है। ये ऑफिस तो आज तक सिर्फ नाम के लिए है। क्योंकि अगर आप किसी निरस्त  किये हुए कांगड़ी पलायन कर्ता  के दस्तावेज के वारे में इस ऑफिस से कोई दस्तावेज मांगे तो इनके पास उपलब्ध न हो पाया और न हो पायेगा। मेरी हिमाचल प्रदेश सरकार से मांग है कि पलायन कर्ता परिवारों के साथ जो अन्याय हो रहा है। उन्हें इंसाफ दिलवाया जाये। मेरी यही सरकार से मांग है।

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