दलित कार्यकर्ता की मांग पर ठाकुर नेता का पलटवार, हिंदू पहचान पर उठे सवाल से मचा बवाल
दलित कार्यकर्ता की मांग पर ठाकुर नेता का पलटवार, हिंदू पहचान पर उठे सवाल से मचा बवाल
शिमला में जातिगत विवाद: दलित कार्यकर्ता रवि कुमार की मांग पर ठाकुर नेता रूमित सिंह का तीखा पलटवार, हिंदू होने पर सवाल उठाते हुए जांच की मांग
शिमला : गायत्री गर्ग /
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में एक नया जातिगत विवाद ने तूल पकड़ लिया है। दलित अधिकार कार्यकर्ता रवि कुमार ने स्थानीय ढाबों से 'ठाकुर शर्मा' जैसे जातिगत नाम हटाने की मांग की, जिस पर देवभूमि क्षत्रिय संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रूमित सिंह ठाकुर ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। ठाकुर ने न केवल अपनी जाति पर गर्व जताया, बल्कि रवि कुमार के हिंदू होने पर सवाल उठाते हुए शिमला पुलिस और जिला प्रशासन से जांच की मांग की है। इस बयान ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है, जहां जातिवाद, धार्मिक पहचान और सरकारी सुविधाओं पर सवाल उठ रहे हैं।
विवाद की शुरुआत: नाम हटाने की मांग
रवि कुमार, जो दलित समुदाय के अधिकारों के लिए सक्रिय हैं, ने हाल ही में शिमला के ढाबों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर जातिगत नामों (जैसे 'ठाकुर शर्मा ढाबा') के इस्तेमाल को भेदभावपूर्ण बताते हुए इन्हें हटाने की अपील की। उनका तर्क है कि ऐसे नाम दलित और अन्य पिछड़े वर्गों को अपमानित करते हैं और सामाजिक समानता के खिलाफ हैं। कुमार ने स्थानीय प्रशासन से अपील की कि ऐसे नामों वाले प्रतिष्ठानों पर सख्ती बरती जाए।
इस मांग ने क्षत्रिय समुदाय में असंतोष पैदा कर दिया। देवभूमि क्षत्रिय संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रूमित हिंदू एकता के मुद्दों पर मुखर रहते हैं, ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश जारी किया। ठाकुर ने कहा, "हमें ठाकुर होने पर गर्व है, और ठाकुरों व ब्राह्मणों के नाम पर ढाबे भी चलेंगे। किसी की हैसियत नहीं है इन्हें बंद करवाने की!"
ठाकुर का तीखा हमला: हिंदू होने पर सवाल और जांच की मांग
ठाकुर ने अपने बयान को और आगे बढ़ाते हुए रवि कुमार पर व्यक्तिगत हमला बोला। उन्होंने कहा, "सबूत तो अब देना पड़ेगा कि तुम हिंदू हो या नहीं, या दोगलापन करते हुए खाली हिंदू के नाम पर अपना पेट और झोली भरने में लगे हो!" ठाकुर ने दावा किया कि ऐसी मांगें हिंदू समाज को कमजोर करने की साजिश हैं और दलित-क्षत्रिय एकता को तोड़ने का प्रयास।
उन्होंने शिमला पुलिस अधिकारियों और जिला प्रशासन को सीधे संबोधित करते हुए कहा, "जांच करो! और सरकारी हुक्का-पानी बंद करो इनका!" यहां 'हुक्का-पानी' से उनका इशारा सरकारी सुविधाओं या फंडिंग की ओर था, जो वे रवि कुमार पर लगाए गए 'दोगलेपन' के आरोप से जोड़ रहे हैं। ठाकुर का यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जहां #ThakurPride और #DalitVsThakur जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
प्रतिक्रियाएं: समर्थन और विरोध की बाढ़
ठाकुर के बयान को क्षत्रिय और ब्राह्मण समुदाय के कई नेताओं ने समर्थन दिया। एक स्थानीय क्षत्रिय नेता ने कहा, "जाति पर गर्व जताना अपराध नहीं, बल्कि हमारी विरासत है। दलित कार्यकर्ता ऐसी मांगों से समाज को बांट रहे हैं।" वहीं, दलित संगठनों ने इसे 'जातिवादी धमकी' करार दिया।
शिमला जिला प्रशासन ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, पुलिस दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील कर रही है। हिमाचल प्रदेश में जातिगत संवेदनशीलता को देखते हुए, यह विवाद आगामी स्थानीय चुनावों में असर डाल सकता है।
पृष्ठभूमि: हिमाचल में जातिगत तनाव
हिमाचल प्रदेश में दलित (लगभग 25% आबादी) और क्षत्रिय समुदायों के बीच कभी-कभी भूमि, व्यापार और सामाजिक अधिकारों पर विवाद होते रहते हैं। हाल के वर्षों में शिमला और मंडी जैसे जिलों में इसी तरह के नाम-प्रथा पर बहस छिड़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया ने इन मुद्दों को तेजी से वायरल कर दिया है, जिससे स्थानीय विवाद राष्ट्रीय चर्चा बन जाते हैं।
यह विवाद हिंदू समाज की आंतरिक एकता पर सवाल उठाता है। क्या नाम बदलना समानता की दिशा में कदम है या सांस्कृतिक विरासत पर हमला? शिमला प्रशासन की प्रतिक्रिया तय करेगी कि यह विवाद शांत होता है या और भड़कता है। न्यूज डेस्क इसकी लगातार निगरानी कर रही है।
(सभी बयान और तथ्य सोशल मीडिया पोस्ट और स्थानीय स्रोतों पर आधारित। कोई भी पक्षपाती टिप्पणी नहीं।)


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