अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लेने होंगे कड़े फैसले : CM सुक्खू - Smachar

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अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लेने होंगे कड़े फैसले : CM सुक्खू

शिमला : मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार वाटर सेस को लेकर एक यूनिवर्सल और यूनिफॉर्म कानून लाएगी। टूरिज्म सेक्टर को और मदद करने के लिए धारा-118 को भी थोड़ा रिलैक्स करना होगा। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि हिमाचल की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कड़े फैसले लेने होंगे।



इसमें विपक्ष और प्रदेश की जनता का सहयोग जरूरी है। सरकार ऐसे कदम उठा रही है कि प्रदेश अपने पांव पर खड़ा हो। मुख्यमंत्री विधानसभा में पिछले दिन से आर्थिक स्थिति पर चली चर्चा का जवाब दे रहे थे। नियम 130 के तहत कांग्रेस विधायकों भवानी पठानिया, केवल सिंह पठानिया और चंद्रशेखर ने यह चर्चा लाई थी, जिसमें भाजपा विधायकों ने भी हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार वाटर सेस को लेकर एक यूनिवर्सल और यूनिफॉर्म कानून लाएगी। पिछले एक्ट को अदालत ने रोक दिया था और अब यह सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन राज्य सरकार हिमाचल की नदियों में बहता पानी को संसाधन की तरह इस्तेमाल करेगी। इसके लिए उपमुख्यमंत्री से चर्चा हुई है और कैबिनेट में जल्दी यह मामला आएगा। उन्होंने कहा कि टूरिज्म सेक्टर को और मदद करने के लिए धारा-118 को भी थोड़ा रिलैक्स करना होगा। सीएम ने कहा कि प्राकृतिक आपदा के बाद हुए नुकसान के बदले मिलने वाले पोस्ट डिजास्टर नीड एसेस्मेंट का पैसा मिल जाए, भारत सरकार से एनपीएस कंट्रीब्यूशन का पैसा मिल जाए और बीबीएमबी एरियर मिल जाए, तो काफी राहत मिल जाएगी।

इसके लिए वह केंद्रीय वित्त मंत्री से मिलने दिल्ली जाएंगे। यदि नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर भी साथ चलने को तैयार हों, तो मैं उनके साथ भी दिल्ली जाने को तैयार हूं। उन्होंने सदन में आंकड़े रखते हुए बताया कि पूर्व भाजपा सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन, रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में कमी और जीएसटी कंपनसेशन बंद होने के कारण हिमाचल की यह हालत हुई है। इसमें सुधार के लिए उनकी सरकार लगातार रिफॉम्र्स कर रही है। इस संकट से निकलने के लिए वित्तीय अनुशासन जरूरी है। पूर्व भाजपा सरकार ने रिवेन्यू सरप्लस होने के बावजूद कर्मचारियों की देनदारियां रोक कर रखीं और फिर चुनावी वर्ष में वोट के लालच में सब कुछ फ्री कर दिया। इसमें बिजली, पानी और बस यात्रा की सबसिडी शामिल थी। साथ ही जाते-जाते सैकड़ों दफ्तर भी खोल गए। इससे राज्य के कोषागार पर बुरा असर पड़ा। इन चुनौतियों के बावजूद उनकी सरकार ने पहली कैबिनेट में ओल्ड पेंशन स्कीम को मंजूरी दी। यह फैसला कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए था। विद्युत सबसिडी के युक्तिकरण पर भी सरकार काम कर रही है। मार्च महीने तक इसमें काम पूरा हो जाएगा, क्योंकि बिजली बोर्ड को भी आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है। हालांकि मुख्यमंत्री के जवाब के बीच में ही विपक्षी दल भाजपा के विधायक बहिष्कार कर सदन से बाहर चले गए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री की ओर से एक डिनर होता है। मैंने तो इस बार वह भी नहीं दिया, क्योंकि हालत कुछ ऐसी है। भाजपा के कुछ विधायकों ने दो महीने का वेतन मंत्रियों और जीपीएस का डेफर करने के फैसले की निंदा की थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें पता है कि इससे ज्यादा मदद नहीं मिलेगी, लेकिन यह नैतिकता के तहत उठाया गया कदम है। इसमें सबको साथ देना चाहिए। वह जनता से कुछ नहीं छुपाना चाहते। जो प्रदेश की हालत है, वह कारणों के साथ सामने रखी जाएगी।

मुख्यमंत्री सुक्खू ने बताया कि इस महीने कर्मचारियों को पांच तारीख को वेतन दिए जाने के बावजूद किसी ने इसका विरोध नहीं किया। फिसकल प्रूडेंस में राज्य सरकार का साथ देने के लिए वह कर्मचारियों का धन्यवाद करते हैं। सिर्फ कर्मचारी ही नहीं, गवर्नर और चीफ जस्टिस की सैलरी भी पांच तारीख को ही गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार हर साल 24000 करोड़ सरकारी विभागों के कर्मचारियों पर और 3300 करोड़ बोर्ड निगमों के कर्मचारियों पर खर्च करती है।

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