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अब हर पुलिसकर्मी नहीं दे पाएगा मीडिया को बयान, DGP ने जारी किए सख्त निर्देश

अब हर पुलिसकर्मी नहीं दे पाएगा मीडिया को बयान, DGP ने जारी किए सख्त निर्देश 


शिमला: हिमाचल प्रदेश पुलिस के महानिदेशक (DGP) अशोक तिवारी ने पुलिस अधिकारियों द्वारा मीडिया से बातचीत करने और सोशल मीडिया पर बयानबाजी करने को लेकर एक नया सर्कुलर जारी किया है। नए आदेशों के तहत अब पुलिस विभाग में सूचनाओं के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम लागू कर दिए गए हैं।

केवल SP और DIG स्तर के अधिकारी ही होंगे अधिकृत

सर्कुलर के अनुसार, अब केवल जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) और उप-महानिरीक्षक (DIG - Range) ही अपराध, कानून-व्यवस्था, जांच और पुलिस नीतियों पर आधिकारिक तौर पर मीडिया से बात कर सकेंगे। इसके लिए भी जहां आवश्यक हो, पुलिस मुख्यालय (PHQ) से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होगा।

SDPO और SHO पर लगी पाबंदी

DGP ने स्पष्ट किया है कि अक्सर देखा गया है कि SDPOs और SHOs अपनी नई पोस्टिंग पर या अपराध की जांच के दौरान मीडिया में सीधे बयान देते हैं। अब इन अधिकारियों के आधिकारिक क्षमता में मीडिया को संबोधित करने, इंटरव्यू देने या सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। किसी भी विशेष परिस्थिति में केवल लिखित अनुमति के बाद ही वे ऐसा कर पाएंगे।

नियमों के उल्लंघन पर होगी सख्त कार्रवाई

इस आदेश में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि यह निर्देश 'संस्थानिक अनुशासन' और 'सूचना की एकरूपता' बनाए रखने के लिए दिए गए हैं। इन निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ CCS (Conduct) Rules, 1964 और हिमाचल प्रदेश पुलिस एक्ट, 2007 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

मुख्य बिंदु:

मीडिया संपर्क: केवल SP और DIG को अधिकार।

सोशल मीडिया: पुलिसिंग से जुड़े मामलों पर निजी तौर पर टिप्पणी करने पर रोक।

अनुशासन: आदेशों की अवहेलना को गंभीरता से लिया जाएगा।

लागू: ये निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू कर दिए गए हैं।

हिमाचल प्रदेश पुलिस के इस सर्कुलर का मीडिया की कार्यप्रणाली और सूचनाओं के आदान-प्रदान (Information Flow) पर गहरा असर पड़ेगा। इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को नीचे विस्तार से समझाया गया है:

1. सूचना का केंद्रीकरण (Centralization of Information)

अब मीडिया को छोटी-बड़ी खबरों के लिए सीधे थाना प्रभारी (SHO) या डीएसपी (SDPO) से जानकारी नहीं मिल पाएगी। पत्रकारों को अब हर आधिकारिक जानकारी के लिए केवल SP या DIG कार्यालय पर निर्भर रहना होगा। इससे फील्ड स्तर की खबरों को तुरंत कवर करने में देरी हो सकती है।

2. सटीकता बढ़ेगी लेकिन गति कम होगी

फायदा: आधिकारिक बयान केवल उच्च अधिकारियों द्वारा जारी किए जाएंगे, जिससे सूचना के गलत होने या अफवाह फैलने की गुंजाइश कम होगी। पुलिस की ओर से एक 'यूनिफॉर्म' (एकसमान) संदेश जाएगा।

नुकसान: 'ब्रेकिंग न्यूज' के दौर में देरी होगी। जब तक जिले के SP की ओर से आधिकारिक पुष्टि आएगी, तब तक घटना पुरानी हो चुकी होगी या सोशल मीडिया पर अपुष्ट खबरें फैल चुकी होंगी।

3. खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के लिए चुनौती

अक्सर पत्रकार जमीनी स्तर के अधिकारियों से बात करके केस की बारीकियों या जांच की दिशा का पता लगाते थे। इस सर्कुलर के बाद निचले स्तर के अधिकारी कार्रवाई के डर से मीडिया से दूरी बना लेंगे, जिससे केस की गहराई तक जाना पत्रकारों के लिए कठिन हो जाएगा।

4. जवाबदेही का स्तर बदलेगा

अब किसी भी गलत सूचना या पुलिस की कार्रवाई में देरी के लिए सीधे तौर पर जिला पुलिस प्रमुख (SP) जवाबदेह होंगे। इससे सूचना देने की प्रक्रिया अधिक औपचारिक और कानूनी रूप से सुरक्षित (Legally sound) हो जाएगी।

प्रमुख प्रभाव एक नज़र में

मीडिया के अधिकार सीधे स्रोतों (Sources) तक पहुंच कम होगी; सूचना के लिए 'सिंगल विंडो' सिस्टम पर निर्भरता।

सूचना की गुणवत्ता भ्रामक बयानों पर रोक लगेगी; केवल प्रमाणित और अधिकृत जानकारी ही बाहर आएगी।

सूचना का प्रवाह ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों की खबरें हेडक्वार्टर तक पहुंचने और फिर मीडिया तक आने में समय लगेगा।

सोशल मीडिया पुलिसकर्मियों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर वीडियो या पोस्ट डालकर वाहवाही लूटने की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।

यह कदम पुलिस विभाग में अनुशासन तो लाएगा, लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता और सूचना के त्वरित अधिकार के बीच एक टकराव की स्थिति भी पैदा कर सकता है। ग्राउंड रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के लिए अब सूचना जुटाना पहले की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण होगा।

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