वोट कटने और वोट बढ़ने की घटनाएं: लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल - Smachar

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वोट कटने और वोट बढ़ने की घटनाएं: लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल

 वोट कटने और वोट बढ़ने की घटनाएं: लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल


नगरोटा सूरियां : प्रेम स्वरूप शर्मा /

वर्तमान भारत में वोट बढ़ने और अब वोट कटने की घटनाएं लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर रही हैं। ये घटनाएं केवल चुनावी आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की मूल भावना ‘जनता का शासन’ पर सीधा प्रहार हैं। बेंगलुरु के महादेवपुरा क्षेत्र में फर्जी वोट पंजीकरण, डुप्लीकेट वोट और एक ही पते पर सैकड़ों वोटों के रजिस्ट्रेशन, धुंधली व अनुपयुक्त फोटो, फॉर्म 6 का दुरुपयोग ,झूठे व अवैध पते व जीरो संख्या के पते की खबरें चिंता बढ़ा रही हैं। इसी तरह बिहार में विशेषकर अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़े वर्गों के वोट कटने की घटनाओं की खबरें भी लोकतंत्र की निष्पक्षता पर गहरा सवाल खड़े कर रही हैं।इस स्थिति में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पहले चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए तीन सदस्यीय समिति बनी थी, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल होने थे। इस व्यवस्था का उद्देश्य था कि आयोग में संतुलन और निष्पक्षता बनी रहे, ताकि चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष हो।लेकिन वर्तमान सरकार ने अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए इस व्यवस्था को बदल दिया। एक नया कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस तीन सदस्यीय समिति से बाहर कर दिया गया और इसके स्थान पर सत्ताधारी दल का एक मंत्री शामिल कर दिया गया। इस बदलाव ने समिति का बहुमत सत्ताधारी दल के पक्ष में कर दिया, जिससे चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में निष्पक्षता खतरे में पड़ गई।इस तरह का बदलाव सीधे तौर पर चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रभावित करता है, जो लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। जब चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति ही राजनीतिक दबाव में होती है,ऐसे नियुक्त अधिकारी सरकार की बोली बोलते हैं और संस्था के संवैधानिक मूल्यों को भूल जाते हैं। और वर्तमान में ऐसा ही होते दिख रहा है। आज पूरे विपक्ष ने भी इस मुद्दे पर आवाज उठाई है और बताया है कि कैसे चुनाव आयोग की लापरवाही और राजनीतिक दबावों ने लोकतंत्र को कमजोर किया है। विपक्ष इस बात पर जोर दे रहा है कि लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब संस्थान निष्पक्ष और स्वतंत्र हों। अनावश्यक का वोट कटना और वोट बढ़ना हमारे लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा हैं। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर लगे सवाल लोकतंत्र की स्थिरता को हिला देते हैं। इसलिए, भारत के लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी है कि चुनाव आयोग को पूरी स्वतंत्रता और निष्पक्षता मिले। वहां नियुक्त अधिकारी जनता के टैक्स के पैसे से सुविधा व वेतन लेते हैं, कोई सरकार अपनी जेब से नहीं देती ।उन्हें महज सरकारी पक्ष को ही नहीं अपितु प्रत्येक राजनीतिक दल की बात को महत्व देना चाहिए ।उनके द्वारा उठाए मुद्दों को सुनना चाहिए ।उस पर जांच करनी चाहिए और अपनी विश्वसनीयता जनता में बनाए रखने के लिए निष्पक्ष दिखना चाहिए ताकि हर नागरिक का वोट बराबर महत्व रख सके। तभी हम एक न्यायपूर्ण और सशक्त लोकतंत्र की ओर बढ़ सकते हैं। वर्तमान दौर में जिस तरह की भूमिका भारत का निर्वाचन आयोग कर रहा है। उससे पूर्णतया भेदभाव, पक्षपाती व संवैधानिक मूल्यों का हनन करते हुए दिख रहा है जो हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है। सदियों की गुलामी तोड़ व कड़े संघर्ष से पाए लोकतंत्र को बचाने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को जागरूक होना जरूरी है ताकि किसी भी दल की मनमानी को रोका जाए।

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