हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: धारा 163-ए रद्द, अतिक्रमण पर सख्त कार्रवाई के निर्देश
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: धारा 163-ए रद्द, अतिक्रमण पर सख्त कार्रवाई के निर्देश
शिमला : गायत्री गर्ग /
5 अगस्त 2025, दोपहर 12:22 बजे (IST): हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण निर्णय में राज्य के भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए को मनमाना और असंवैधानिक घोषित करते हुए इसे रद्द कर दिया है। साथ ही, इस धारा के तहत बनाए गए सभी नियमों को भी निरस्त कर दिया गया है। यह फैसला तिकेंद्र सिंह पंवार द्वारा दायर याचिका (SLP डायरी नंबर 40056/2025) के जवाब में आया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद हाई कोर्ट ने यह कदम उठाया।
धारा 163-ए का अंत: यह धारा अतिक्रमणकर्ताओं को सरकारी भूमि पर प्रतिकूल कब्जे के आधार पर अधिकार जताने की अनुमति देती थी, जिसे अब रद्द कर दिया गया है।
अंतरिम रोक: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत, 2 जुलाई 2025 के हाई कोर्ट के आदेश (CWPIL नंबर 9/2015) के तहत पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई गई है, लेकिन राज्य को फलों की नीलामी करने की छूट दी गई है। अतिक्रमण हटाओ अभियान: कोर्ट ने राज्य सरकार को सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए तेजी से कार्रवाई करने और 28 फरवरी 2026 तक इसे पूरा करने का निर्देश दिया है।
कानूनी सुधार: सरकार को "आपराधिक अतिक्रमण" कानून में संशोधन करने और उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा की तरह कड़े प्रावधान लागू करने को कहा गया है।
जिम्मेदारी तय: नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम के अधिकारियों को अतिक्रमण की रिपोर्टिंग और कार्रवाई की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, जिसमें कर्तव्य की अवहेलना पर सख्त कार्रवाई के प्रावधान होंगे।प्रतिकूल कब्जे पर रोक: सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अधिगृहीत भूमि पर कब्जे का दावा अब मान्य नहीं होगा, और अतिक्रमणकर्ताओं को हटाने की लागत और उपयोग शुल्क चुकाना होगा।
निर्देश लागू: महाधिवक्ता को इस निर्णय की प्रति मुख्य सचिव को भेजने और राजस्व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश देने को कहा गया है।
यह फैसला हिमाचल प्रदेश में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण की समस्या से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अतिक्रमण को नियमित करने के बजाय इसे हटाने पर जोर दिया जाना चाहिए। यह निर्णय 5 अगस्त 2025 को न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ द्वारा पारित किया गया ।
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