लाहौल में सम्पन्न हुआ राज्य स्तरीय तीन दिवसीय जनजातीय मेला 2025
लाहौल में सम्पन्न हुआ राज्य स्तरीय तीन दिवसीय जनजातीय मेला 2025
अंतिम सांस्कृतिक संध्या की मुख्य अतिथि रहीं उपायुक्त लाहौल-स्पीति किरण भड़ाना
केलांग : ओम बौद्ध /
लाहौल की सुरम्य घाटियों में तीन दिनों तक चलने वाला राज्य स्तरीय जनजातीय मेला 2025 उल्लास, रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और जीवंत उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। इस मेले की अंतिम सांस्कृतिक संध्या में उपायुक्त लाहौल-स्पीति किरण भड़ाना मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहीं ।
इस वर्ष का मेला कई मायनों में खास रहा। मेले में पहली बार जनजातीय क्वीन, किंग तथा गृहलक्ष्मी प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं, जिसमें स्थानीय युवाओं और महिलाओं ने भाग लेकर कला, संस्कृति और सौंदर्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया। ये प्रतियोगिताएँ मेले में एक नई ऊर्जा और उत्साह लेकर आईं।
साथ ही यह मेला हिमाचल प्रदेश का पहला ईको-फ्रेंडली और ज़ीरो वेस्ट फेस्टिवल भी था। पूरी व्यवस्था पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से तैयार की गई थी, जिसमें सिंगल-यूज प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध था, पुनः भरने योग्य जल स्टेशनों की उपलब्धता थी, और पत्तल जैसी बायोडिग्रेडेबल सामग्री का प्रयोग किया गया। स्वच्छता के लिए स्वयंसेवकों की भी तैनाती की गई थी।
समारोह की सांस्कृतिक संध्या का आगाज महिला मंडल गोशल की मनमोहक प्रस्तुतियों से हुआ, इसके बाद लासोल सांस्कृतिक संस्था का पारंपरिक चार्त्से पिजन डांस मंच पर चार चाँद लगा गया। NZCC, पालदेन, फुर्बु चुक्सा नेगी की प्रस्तुति ने सांस्कृतिक रंगत को और बढ़ाया। वहीं, अभया बैंड, बिरबल किन्नौरा, पद्मा डोलकर और रमेश ठाकुर की ऊर्जा से परिपूर्ण प्रस्तुतियों ने समापन कार्यक्रम की शोभा और बढ़ा दी।इस के अतिरिक्त सौंदर्य प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसे तीन वर्गों में आयोजित किया गया ट्राइबल क्वीन,किंग एवं गृह लक्ष्मी जिसमे स्थानीय युवाओं व महिलाओं ने बढ़चढ़ कर भाग लिया ।
उपायुक्त किरण भड़ाना ने अपने सम्बोधन में इस मेले को “लाहौल की सांस्कृतिक आत्मा और पर्यावरण संरक्षण की अनूठी मिसाल” बताते हुए, आयोजन में लगे सभी विभागाध्यक्षों, एसडीएम आकांक्षा शर्मा, सहायक आयुक्त सह पीओ आईटीडीपी कल्याणी तिवाना, डीएसपी रश्मि शर्मा और उनकी पुलिस टीम का हृदय से धन्यवाद किया। उन्होंने इस आयोजन को जनजातीय समुदायों की समृद्ध विरासत का सम्मान और पर्यावरण के प्रति सजगता का प्रतीक माना।
स्थानीय निकाय, व्यापार मंडल, होटल संघ, महिला एवं युवा क्लब, कला मंच और बड़ी संख्या में पर्यटकों और स्थानीय लोगों की भागीदारी ने इस मेला को सफल एवं यादगार बना दिया। तीन दिवसीय यह पर्व केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि जनजातीय संस्कृति, सामाजिक एकजुटता और पर्यावरणीय जिम्मेदारी का सशक्त संदेश भी बनकर उभरा।
यह मेला लाहौल-स्पीति को एक पर्यावरण-प्रेमी संस्कृति का केंद्र और जनजातीय कला-संस्कृति के संरक्षण के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल के रूप में स्थापित करता है।
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