मंगल पांडे ने जलाई थी 1857 ई की महान क्रांति की मशाल : डॉ राजकुमार
मंगल पांडे ने जलाई थी 1857 ई की महान क्रांति की मशाल : डॉ राजकुमार
कंवर दुर्गा चंद राजकीय महाविद्यालय जयसिंहपुर जिला कांगड़ा में आज दिनांक 12 नवंबर 2025 को इतिहास विभाग के सौजन्य से एकदिवसीय इतिहास संगोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसका मुख्य शीर्षक "1857 ई. की क्रांति पर पुनरावलोकन “ रहा। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केंद्र धर्मशाला के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ राजकुमार ने शिरकत की। इस संगोष्ठी की शुरुआत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. अरुण चन्द्र, मुख्य अतिथि डॉ. राजकुमार व अन्य प्राध्यापकों द्वारा द्वीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदन के साथ की गई। इस संगोष्ठी में महाविद्यालय प्राचार्य प्रोफेसर अरुण चंद्र (संगोष्ठी अध्यक्ष), प्रोफेसर विकास राणा (संगोष्ठी संयोजक) , प्रोफेसर रविंद्र कुमार (सह– संगोष्ठी संयोजक), आयोजन सचिव के रूप में इतिहास विभाग के प्रोफेसर विकास कलोत्रा व प्रोफेसर किरण शर्मा एवं महाविद्यालय के समस्त शिक्षक व गैर– शिक्षक वर्ग उपस्थित रहे।
डॉ राजकुमार ने संगोष्ठी में 1857 ई. की क्रांति पर पुनरावलोकन विषय पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला । उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि 1857 ई. की महान क्रांति ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की सशक्त नींव बनाई रखी और समस्त भारतीयों में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध उग्र राष्ट्रवाद की चेतना जगाई । डॉ राजकुमार ने कहा कि महान क्रांति नायक मंगल पांडे ने इस क्रांति की मशाल जलाई थी। इसकी शुरुआत 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी से सैनिक असंतोष के परिणाम स्वरुप एक लाख से अधिक सैनिकों ने क्रांति में सक्रिय रूप में भाग लिया था । महान क्रांतिकारी मंगल पांडे की शहादत के उपरांत जनसाधारण के विभिन्न वर्गो ने आकर्षित होकर बगावत की । इस क्रांति में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बहादुर शाह जफर, नाना साहेब, अवंतीबाई लोधी, बेगम हजरत महल, उदा देवी , खान बहादुर खान, राव तुलाराम सिंह, कुंवर सिंह, नर्तकी आजीजन बाई और कुमारी मैंना की सक्रिय भूमिका और महान बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। साथ ही हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में कांगड़ा के राजा प्रताप चंद, कुल्लू के युवराज प्रताप चंद और कसौली में सूबेदार भीम सिंह ने भी 1857 की क्रांति में सशक्त नायक के रूप में नेतृत्व किया था । डॉ राजकुमार ने कहा कि हमें 1857 की क्रांति के स्वरूप को भारतीय दृष्टिकोण से समझने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि हम विश्व स्तर पर फ्रांस की क्रांति और रूस की क्रांति की चर्चा करते हैं लेकिन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इतिहास लेखन प्रभाव के कारण भारत की महान क्रांति को विद्रोह की संज्ञा देते हैं। 1857 की महान क्रांति ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के नजरिये में एक विद्रोह था जबकि भारतीयों के द्वारा किया गया स्वतंत्रता के लिए प्रथम क्रांति का प्रयास था।
इसके अतिरिक्त अतिथि महोदय जी को महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा टोपी शॉल व स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।
महाविद्यालय के प्राचार्य ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें जीवन में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदान को सदैव याद कर एक दीया उनके याद में जलाना चाहिए क्योंकि आज हम उनके बलिदान के कारण एक स्वतंत्र जीवन जी रहे है। साथ ही उन्होंने इस संगोष्ठी के आयोजक प्रो. विकास कलोत्रा व मुख्य अतिथि का आभार व्यक्त किया और भविष्य में इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन के लिए उनको प्रेरित किया ।
प्राचार्य
प्रो. अरुण चन्द्र
कंवर दुर्गा चंद राजकीय महाविद्यालय जयसिंहपुर कांगड़ा हिमाचल प्रदेश


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