कर्मों की कारा से पूर्ण सद्गुरु ही देते हैं मुक्ति: डॉ. सर्वेश्वर - Smachar

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कर्मों की कारा से पूर्ण सद्गुरु ही देते हैं मुक्ति: डॉ. सर्वेश्वर

 कर्मों की कारा से पूर्ण सद्गुरु ही देते हैं मुक्ति: डॉ. सर्वेश्वर

 


नूरपुर : विनय महाजन /

 दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम बौड़ नूरपुर आश्रम में "सेवा और समर्पण" ( शिष्य का गुरु चरणों में मुक्ति का मार्ग ) नामक भव्य भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें लगभग आसपास के क्षेत्र के 500 से अधिक श्रद्धालुगण पहुंचे सभी ने दिव्य गुरुदेव की कृपा को विचारों के माध्यम से प्राप्त किया इसी अवसर पर गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य डॉ. सर्वेश्वर जी ने बताया कि यह सारा संसार कर्म सिद्धांत के अधीन है। ईश्वर ने इस सृष्टि का निर्माण किया और इसे कर्म के सार्वभौमिक नियम में बाँध दिया। कर्म का यह सिद्धांत कहता है कि जो जैसा कर्म करेगा वो वैसा ही फल पाएगा। कर्म करने का चुनाव तो हमारा होता है लेकिन उसका फल भोगने का चुनाव हमारा नहीं है, उसके लिये तो हम बाध्य हैं। इंसान ने एक बार कर्म किया तो उसका फल उसे वैसे ही ढूंढ लेता है, जैसे हज़ार गायों के झुंड में एक बछड़ा अपनी माँ को ढूंढ लेता है। इंसान अपने जीवन में अनगिनत कर्म करता है, कुछ अच्छे होते हैं, कुछ बुरे। और इन्हीं कर्मों में बँधा जीव सारा जीवन सुख और दुःख की चक्की में पिसता रहता है। और ये कर्म चक्र ही तो है जो हमारे आवागमन का कारण बना हुआ है। आखिर इस कर्म चक्र से मुक्ति का उपाय क्या है? अक्सर लोग कहते हैं कि जीवन भर अच्छे कर्म करो, सबका भला करो, किसी का दिल न दुखाओ। बस अच्छा करो और अच्छा पाओ। लेकिन जंज़ीर चाहे सोने की हो या लोहे की, वो काम तो बाँधने का ही करती है। पिंजरा सोने का हो या लोहे का, वो बन्धन का ही कारण बनेगा। ऐसे ही कर्म चाहे अच्छे हों या बुरे, वो बन्धन के ही हेतु हैं। फिर कर्म बन्धन से मुक्ति का उपाय क्या है? जिस प्रकार एक बीज को अगर अग्नि में भून दिया जाए तो वह अंकुरित नहीं हो सकता। ठीक इसी प्रकार जब हमारे कर्म बीज भी ब्रह्मज्ञान की अग्नि में दग्ध होते हैं, तभी इस कर्म बन्धन से मुक्ति सम्भव है। जब जीवन में पूर्ण गुरु का आगमन होता है, तब वह हमें ईश्वर के ज्योति स्वरूप का हमारे घट में दर्शन करवा हमारे भीतर ही ब्रह्मज्ञान की अग्नि प्रज्ज्वलित कर देते हैं। और फिर गुरु आज्ञा में चलते हुए एक साधक इस ज्ञानाग्नि में अपने सब कर्म स्वाहा कर लेता है और सदा-सदा के लिए मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। इसलिए हमें भी ज़रूरत है एक ऐसे पूर्ण गुरु की जो हमारे भीतर ही हमें ईश दर्शन करवा हमें कर्मों की कारा से मुक्त कर दें। इस अवसर पर स्वामी विनयानंद जी, महात्मा नरेश जी, महात्मा सुनील जी ने भजन गाकर श्रोताओं को निहाल किया। सभी साधकों ने विश्व कल्याण की मंगल कामना से उत्प्रोत ध्यान साधना कर गुरुदेव का ध्यान किया और सभी के लिए भंडारे का प्रबंध किया गयाl

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