प्रदेश में आपदा का दायरा लगातार बढ़ा — सरकार के प्रयासों पर सवाल
प्रदेश में आपदा का दायरा लगातार बढ़ा — सरकार के प्रयासों पर सवाल
शिमला : गायत्री गर्ग /
हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष मॉनसून सीज़न के दौरान आई प्राकृतिक आपदाओं का असर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। मंडी ज़िले में हुई भारी तबाही के बाद अब कुल्लू, शिमला, ऊना, लाहौल-स्पीति और किन्नौर ज़िले भी भारी बारिश, भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाओं की चपेट में आ गए हैं।
राज्यभर में मकान ढहने, सड़कें टूटने, पुल बहने और खेती-बाड़ी को हुए नुकसान का सिलसिला जारी है। अनुमान है कि अब तक हजारों करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हो चुका है, जबकि सैकड़ों परिवार बेघर और आजीविका से वंचित हो गए हैं।
लंबे इंतज़ार के बाद सीमित राहत
लगातार चार दिन चली मंत्रिमंडल (कैबिनेट) की बैठक के बाद राज्य सरकार ने आपदा प्रभावितों के लिए एक स्पेशल पैकेज की घोषणा की। हालांकि, प्रभावित इलाकों के लोगों का कहना है कि इस पैकेज के अलावा अब तक सरकार की तरफ से कोई ठोस और दीर्घकालिक योजना सामने नहीं आई है।
स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता आरोप लगा रहे हैं कि राहत वितरण की प्रक्रिया धीमी है और कई गाँव अब भी सड़क संपर्क और बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से कटे हुए हैं।
डेढ़ महीने बाद भी बहाली के काम अधूरे
आपदा को अब डेढ़ महीने से ज़्यादा समय हो चुका है, लेकिन अधिकांश प्रभावित क्षेत्रों में बहाली का काम बहुत धीमी रफ्तार से हो रहा है। कई जगह अस्थायी पुल और सड़कें तक नहीं बनाई गई हैं, जिससे राहत सामग्री पहुँचाने में दिक्कतें आ रही हैं।
कुल्लू और किन्नौर के ऊपरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का कहना है कि न तो पर्याप्त टेंट और अस्थायी आवास की व्यवस्था की गई है और न ही फसल और संपत्ति के नुकसान का मुआवज़ा समय पर दिया गया है।
लोगों में नाराज़गी और चिंता
प्रभावित इलाकों में राहत और पुनर्वास कार्य में देरी को लेकर आम लोगों में नाराज़गी है। उनका कहना है कि सरकार ने शुरुआती दौर में मौके का दौरा कर आश्वासन तो दिए, लेकिन ज़मीनी स्तर पर स्थिति लगभग वैसी ही है जैसी आपदा के दिनों में थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते स्थायी और तेज़ बहाली की योजना लागू नहीं हुई तो आने वाले दिनों में प्रभावित परिवारों की मुश्किलें और बढ़ जाएँगी।
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