पौंग झील का पानी बहा ले गया घर–खेत… अब ठंडी रातों में खुले आसमान तले परिवार बेघर - Smachar

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पौंग झील का पानी बहा ले गया घर–खेत… अब ठंडी रातों में खुले आसमान तले परिवार बेघर

 पौंग झील का पानी बहा ले गया घर–खेत… अब ठंडी रातों में खुले आसमान तले परिवार बेघर


 नूरपुर : विनय महाजन /

 नूरपुर प्रदेश की रियाली पंचायत के पीड़ितों ने आज सरकार को 10 दिन का अल्टीमेटम दियाl किराये का वादा अधूरा, फ्री मे रह रहे भवन के मकान मालिक भी घर खाली करवाने पर अड़े व बेसहारा परिवारों ने मांगी रहने लायक जमीन और पक्का आश्रय सरकार से lजिला कांगड़ा के इस क्षेत्र में एक बार फिर सरकार व प्रशासनिक उदासीनता के कारण बेबस परिवारों की तकलीफ़ सामने आई है। पौंग झील से छोड़े गए पानी ने रियाली पंचायत में कई परिवारों के मकान, ज़मीन और फसल सब बहा दि और अब चार महीने बाद भी इन परिवारों को कोई भी न राहत मिली औऱ न कोई आश्रय। ठंड बढ़ रही है, पर उम्मीदें कम हो रही हैं। इसी दर्द के साथ आज पीड़ितों ने मुख्यमंत्री को अल्टीमेटम भेजा है।

गौरतलब है कि 6 अगस्त 2025 की वो सुबह जब मंड बहातपुर के लोगों ने अपनी आंखों के सामने पानी को घरों की दीवारों को गिराते व खेतों को निगलते और अपनी उम्र भर की कमाई को बहाते देखा। शुरुआत में थोड़ी राहत मिली कुछ किलो राशन व कुछ दिलासे और किराये का घर देने का वादा। पर वादा सिर्फ कागज़ों तक रहा। सर्द हवाओं के बीच अब इन परिवारों के सिर से छत भी छिनती जा रही है। इस मामले मे रमेश दत्त कालिया समाजसेवी ने वताया कि सरकार ने कहा था कि किराये के मकान का खर्च व मकान बनाने के लिर धन देगी लेकिन आज तक किसी फाइल ने उनकी तकलीफ़ों की तरफ रुख नहीं किया। ये लोग ठंड में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। अगर 10 दिन में कार्रवाई नहीं होती तो हम सड़क पर उतरेंगे, और विधानसभा तक जाएंगे

 शाम मोहम्मद व बारू व मोहम्मद ईस मासूम… और बख्शो देवी ये सिर्फ नाम नहीं हैं, ये वो लोग हैं जिनकी जिंदगी अचानक उजड़ गई। मेहनत-मजदूरी करके चलने वाला परिवार अब इस दुविधा में है कि किराया कैसे देंऔर फ्री मे रहने के लिए दिए मकान मालिक भी घर खाली करवाने लगे है तो जाएं कहां? बच्चों की स्कूल कॉपियां भीग चुकी हैंl औरतें रातभर जगती हैं कि कहीं बारिश फिर से न आ जाए…

हमारे पास कुछ भी नहीं बचा… मेरी माता , और मै और मेरा भाई अपंग हैं। पहले झुग्गी गिरी… फिर पक्का मकान भी पानी ले गया। अब ठंड में… खुले आसमान के नीचे कैसे जिंदा रहें? सरकार हमें कहीं रहने लायक ज़मीन ही दे दे… बस इतनी ही गुहार है।”

सरकारी फाइलें इंतज़ार कर सकती हैंl लेकिन इन परिवारों की रातें नहीं। हर दिन उनकी आँखों में यह सवाल तैरता है—"क्या हमें भी इस देश में रहने का हक़ है?" इस मामले मे पीड़ित परिवारों की मांग साफ है—एक टुकड़ा ज़मीन और एक छत, ताकि उनका जीवन फिर से पटरी पर लौट सके।

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