हिमाचल के बागवान तबाह – बारिश, टूटी सड़कें और मंडियों की लूट ने किया सेब सीजन बर्बाद
हिमाचल के बागवान तबाह – बारिश, टूटी सड़कें और मंडियों की लूट ने किया सेब सीजन बर्बाद
शिमला : गायत्री गर्ग/
हिमाचल प्रदेश के सेब बागवान इस सीजन गहरे संकट से गुजर रहे हैं। प्रदेश की रीढ़ माने जाने वाले सेब उद्योग पर इस बार मौसम और व्यवस्था, दोनों की मार पड़ी है। लगातार बारिश, जगह-जगह भूस्खलन से टूटी सड़कें, बंद पड़े रास्ते और मंडियों में आढ़तियों की मनमानी ने बागवानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। नतीजा यह हुआ है कि इस साल का सेब सीजन मुनाफे की बजाय घाटे का सौदा साबित हो रहा है।
🔹 बारिश और सड़कें बनी सबसे बड़ी बाधा
शिमला के बागवान निखिल शर्मा ने बताया कि बारिश ने इस बार बागवानों की कमर तोड़ दी है। बागानों को भारी नुकसान हुआ है। कई स्थानों पर सड़कें टूटकर पूरी तरह बंद हो गई हैं। जिन रास्तों से सेब मंडियों तक पहुंचना था, वे भूस्खलन और दरारों के चलते अब तक बहाल नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे हालात में सेब समय पर मंडियों तक नहीं पहुंच पा रहा, जिससे ड्रॉपिंग (पेड़ों से समय से पहले गिरना) बहुत बढ़ गई है। मजबूरी में बागवानों को अधपका सेब समय से पहले ही तोड़ना पड़ रहा है।
"जो सेब किसी तरह मंडियों तक पहुंच भी रहे हैं, वे सही दामों पर नहीं बिक रहे। लागत से भी कम दाम मिल रहे हैं। इस साल हमें घाटा उठाना तय है।"
— निखिल शर्मा, बागवान
🔹 मंडियों में मनमानी और सरकार पर सवाल
प्रोग्रेसिव बागवान मोहित शर्मा ने मंडियों की बदहाली और सरकार की चुप्पी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि एक पेटी तैयार करने में लगभग 800 रुपये का खर्च आता है, लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि कई बार यह पेटी 800 रुपये से भी कम दाम में बिक रही है।
उन्होंने कहा कि सीजन की शुरुआत में अधपके सेब भी 3,000 रुपये प्रति पेटी तक बिक रहे थे, लेकिन अब अच्छी क्वालिटी का सेब भी 1,000 रुपये में नहीं बिक रहा। आढ़ती मनमानी कर रहे हैं और APMC अधिकारी आंख मूंदकर बैठे हैं।
"कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले बागवानों को गारंटी दी थी कि वे अपनी फसलों का दाम खुद तय करेंगे। लेकिन आज हालत यह है कि लागत का आधा भी दाम नहीं मिल रहा। सरकार ने हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया है।"
— मोहित शर्मा, बागवान
🔹 बागवानों का दोहरा संकट
लगातार बारिश ने बागानों को नुकसान पहुंचाया है, वहीं दूसरी ओर व्यापारी और आढ़ती भी बागवानों का शोषण कर रहे हैं। प्रशासन और APMC की चुप्पी ने हालात को और गंभीर बना दिया है।
बागवानों का कहना है कि—
बारिश और भूस्खलन से उनकी उत्पादन और ढुलाई लागत बढ़ गई है।
सड़कें बाधित होने से समय पर सेब मंडियों तक नहीं पहुंच पा रहा।
आढ़ती और व्यापारी अपनी मनमर्जी से दाम तय कर रहे हैं।
सरकार और प्रशासन कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नहीं है।
🔹 राहत और हस्तक्षेप की मांग
बागवानों ने सरकार से गुहार लगाई है कि तुरंत राहत पैकेज घोषित किया जाए और मंडियों में पारदर्शी व्यवस्था लागू की जाए। साथ ही, सेब की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया जाए ताकि बागवानों को लागत से नीचे दाम न मिले।
बागवानों का साफ कहना है कि अगर सरकार ने समय रहते दखल नहीं दिया तो यह सीजन हिमाचल के सेब उद्योग के लिए बर्बादी की मिसाल बन जाएगा।
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