हिमाचल प्रदेश में आपदा और राजनीतिक उथल-पुथल
हिमाचल प्रदेश में आपदा और राजनीतिक उथल-पुथल
शिमला : गायत्री गर्ग /
यह सही है कि 2023 में जब हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा आई, तो राज्य को भारी नुकसान हुआ। कई गाँव उजड़ गए, हजारों लोग बेघर हुए और जान-माल की बड़ी क्षति हुई। इस संकट की घड़ी में, जनता ने अपने नेताओं की ओर मदद और राहत की उम्मीद से देखा।
जैसा कि आपने कहा, इस दौरान राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर राजनीतिक दलों, यानी भाजपा और कांग्रेस, के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। केंद्र में भाजपा की सरकार है, और राज्य में कांग्रेस की। दोनों दलों ने एक-दूसरे पर आपदा राहत में देरी और कमी का आरोप लगाया। इस तरह की राजनीति ने जनता की पीड़ा को और बढ़ा दिया, क्योंकि उन्हें तत्काल सहायता की आवश्यकता थी, न कि राजनीतिक तकरार की।
राहत पैकेज और नेताओं के वेतन-भत्ते
आपकी यह बात भी जायज है कि जनता को केंद्र से पर्याप्त मदद की उम्मीद थी। राज्य में 7 लोकसभा सांसद और 28 विधायक हैं, जिनसे उम्मीद थी कि वे प्रदेश को आपदा से उबारने के लिए मिलकर काम करेंगे। हालाँकि, राहत पैकेज को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल की कमी दिखाई दी।
वहीं, एक तरफ जब जनता को राहत की प्रतीक्षा थी, उसी समय नेताओं के आवास और वेतन बढ़ाने जैसे मुद्दों पर सहमति बन गई। यह बात जनता के बीच नाराजगी का कारण बनी, क्योंकि ऐसे समय में जब राज्य मुश्किल में था, नेताओं का अपनी सुख-सुविधाओं पर ध्यान देना असंवेदनशील लगा। यह दिखाता है कि राजनीतिक दल आपदा के समय भी आपसी मतभेदों और निजी हितों को प्राथमिकता देते हैं।
Rumit Singh Thakur की टिप्पणी, जो कि राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी के अध्यक्ष हैं, हिमाचल की राजनीति में व्याप्त इस विरोधाभास को उजागर करती है। यह दर्शाता है कि आपदा के समय में भी राजनीति और निजी लाभ का खेल जारी रहा, जिससे जनता का नेताओं और व्यवस्था से विश्वास डग मगाया।
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