कांग्रेस का असली चरित्र आपातकाल: आपदा अधिनियम के बहाने 'मिनी-आपातकाल'! विकास ठप, लोकतंत्र उजाड़ने की साजिश! - Smachar

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कांग्रेस का असली चरित्र आपातकाल: आपदा अधिनियम के बहाने 'मिनी-आपातकाल'! विकास ठप, लोकतंत्र उजाड़ने की साजिश!

कांग्रेस का असली चरित्र आपातकाल: आपदा अधिनियम के बहाने 'मिनी-आपातकाल'! विकास ठप, लोकतंत्र उजाड़ने की साजिश!


जारीकर्ता: त्रिलोक कपूर, वरिष्ठ प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), हिमाचल प्रदेश

पालमपुर, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पर तानाशाही और लोकतंत्र विरोधी होने का सीधा आरोप लगाते हुए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (Disaster Management Act) को आपदा खत्म होने के बाद भी जानबूझकर लागू रखना आपातकाल (Emergency) से कम नहीं है।

वरिष्ठ भाजपा प्रवक्ता, त्रिलोक कपूर ने कांग्रेस के इस कदम को विकास रोकने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कुचलने की सोची-समझी साजिश करार देते हुए निम्नलिखित बिंदुवार गंभीर आरोप लगाए:


  कांग्रेस का असली चरित्र आपातकाल लगाना रहा है। ठीक वैसे ही, जैसे आपातकाल में स्वतंत्रता नहीं थी, आज आपदा अधिनियम की आड़ में पत्रकारों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों पर FIR की जा रही है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने जैसा है।

  आपदा खत्म हो चुकी है, फिर भी डिजास्टर एक्ट जानबूझकर लागू रखा गया है। इसका एकमात्र उद्देश्य विकास को रोकना और लोकतंत्र को उजाड़ना है।

 

 मुख्यमंत्री सुक्खू जी ने (कोविड-19 को छोड़कर) आपदा अधिनियम को सबसे लंबी अवधि तक लागू रखकर एक संदिग्ध "रिकॉर्ड" बनाया है, जिसका सीधा खामियाजा राज्य के सामान्य जनजीवन और विकास को भुगतना पड़ रहा है।

 राज्य को आपदा प्रभावित घोषित किए जाने के बावजूद, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (DDMAs) की एक भी बैठक क्यों नहीं हुई? यह अधिनियम की मूल भावना का स्पष्ट उल्लंघन है।

 इन महत्वपूर्ण बैठकों के निर्णय जनता से साझा क्यों नहीं किए गए? पारदर्शिता का यह अभाव संदेह पैदा करता है कि अधिनियम का उपयोग केवल पर्दे के पीछे के फैसलों को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है।


  एक ओर सरकार "आपदा" और "वित्तीय संकट" का हवाला देकर सड़क मरम्मत और अन्य विकास कार्यों को रोक रही है, ठेकेदारों का भुगतान रोक दिया गया है, वहीं दूसरी ओर मंत्रियों के वेतन में 300% तक की भारी वृद्धि इसी आपदा अधिनियम की अवधि के दौरान की गई।

  जब 2020 में एक्ट लागू था, तब हिमाचल में पंचायती राज चुनाव हुए और बिहार विधानसभा चुनाव भी हुए। यदि चुनाव कराना संभव था, तो अब KCCB, वूल फेडरेशन, और पंचायतों के चुनाव क्यों टाले जा रहे हैं?

  आपदा अधिनियम की आड़ में कथित भ्रष्ट अधिकारियों को एक्सटेंशन दिया जा सकता है, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया (चुनाव) को रोका जा रहा है। यह स्पष्ट करता है कि सरकार की प्राथमिकताएं लोकतंत्र व विकास नहीं, बल्कि सत्ता की जुगाड़ है।


 आपदा के नाम पर राज्य लगातार कर्ज पर कर्ज ले रहा है। प्रश्न यह है कि जब सड़कों के मरम्मत का पैसा स्वीकृत ही नहीं हो रहा है, और आपदा पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिल रहा, तो यह भारी भरकम पैसा कहाँ जा रहा है?

  आज भी प्रदेश की सड़कें बदहाल हैं। यह स्पष्ट है कि आपदा अधिनियम सड़कों की रिपेयर का पैसा सैंक्शन न होने का कारण बन गया है, जिससे आम जनता को भारी परेशानी हो रही है।

 

 मुख्यमंत्री जी ने पालमपुर आने के बाद भी गंभीर रूप से आपदा प्रभावित सपेड़ू, बछवाई और अन्य गांवों का दौरा क्यों नहीं किया? यह स्पष्ट दिखाता है कि सरकार एक्ट को केवल कागजी घोषणाओं तक सीमित करना चाहती है, और अपनी उजड़ती पोलिटिकल फील्ड को बचाने के लिये एक्ट लागू की है।

 

 यह सरकार आपदा अधिनियम को ढाल बनाकर "चुनाव चोरी" करने और अपनी अक्षमता व मौज-मस्ती को छिपाने का प्रयास कर रही है। यह वास्तव में संविधान की हत्या है और आपदा पीड़ितों के लिए राहत के बजाय सरकार के लिए बहाना बन गया है।



भारतीय जनता पार्टी, हिमाचल प्रदेश सरकार से तत्काल निम्नलिखित कदम उठाने की मांग करती है:

 1. आपदा प्रबंधन अधिनियम को तत्काल हटाया जाए और विकास एवं कल्याणकारी कार्यों को बहाल किया जाए।

2. राज्य में चुनावी प्रक्रियाओं को तुरंत शुरू किया जाए।

3. आपदा पीड़ितों को तुरंत और पर्याप्त मुआवजा दिया जाए।

4. SDMA/DDMA बैठकों की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।

5. कर्ज और उसके उपयोग पर श्वेत पत्र (White Paper) जारी किया जाए।

6. विकास कार्य युद्घस्तर पर बहाल किये जायें। 


जारीकर्ता:

त्रिलोक कपूर

वरिष्ठ प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी, हिमाचल प्रदेश

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