ज्वाली के 'मिनी हरिद्वार' में विशेष पिंडदान: लाखों गुमनाम हिंदू पीड़ितों को श्रद्धांजलि - Smachar

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ज्वाली के 'मिनी हरिद्वार' में विशेष पिंडदान: लाखों गुमनाम हिंदू पीड़ितों को श्रद्धांजलि

 ज्वाली के 'मिनी हरिद्वार' में विशेष पिंडदान: लाखों गुमनाम हिंदू पीड़ितों को श्रद्धांजलि


ज्वाली : दीपक शर्मा /

 हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाली के मिनी हरिद्वार में आज अमावस्या के पावन अवसर पर एक अत्यंत भावुक और महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान किया गया। जिसमें स्थानीय निवासी कृष्ण चंद रापोत्रा सेवानिवृत्त एजीएम केसीसी बैंक और उनकी धर्म पत्नी सेवानिवृत्त बीईईओ ज्वाली जिला कांगड़ा ने अपने पितरों के लिए किए जाने वाले पिंडदान के साथ-साथ एक विशेष पिंड लाखों ऐसे हिंदुओं के नाम अर्पित किया, जो भारत के इतिहास के विभिन्न कालखंडों में हुए नरसंहारों और त्रासदियों में मारे गए थे।

कृष्ण चंद ने यह विशिष्ट पिंड उन लाखों गुमनाम हिंदू आत्माओं की शांति के लिए समर्पित किया, जो ऐतिहासिक त्रासदियों जैसे:

डायरेक्ट एक्शन डे (16 अगस्त 1946)

मोपला नरसंहार (1921)

कश्मीर नरसंहार (1990)

भारत-पाकिस्तान विभाजन (1947)

बांग्लादेश युद्ध (1971)

में अपनी जान गंवा बैठे थे।

लाखों गुमनाम आत्माओं को तर्पण

परंपरागत रूप से, अमावस्या के दिन और विशेषकर पितृ पक्ष के दौरान, अपने दिवंगत पूर्वजों (पितरों) की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंड दान और तर्पण किया जाता है। कृष्ण चंद द्वारा किया गया यह विशेष तर्पण उन पीड़ितों को समर्पित है जिनका कोई वारिस नहीं बचा या जिन्हें उनके वारिसों द्वारा याद नहीं किया जा सका।

कृष्ण चंद ने इस अनुष्ठान के माध्यम से उन लाखों गुमनाम शहीदों और पीड़ितों को आधिकारिक सम्मान और तर्पण देने का प्रयास किया है, जिन्हें अक्सर इतिहास के पन्नों में भुला दिया गया है। उन्होंने कहा कि यह पिंड उन सभी की आत्मा को शांति प्रदान करने के उद्देश्य से दिया गया है, ताकि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके।

धर्म और इतिहास का संगम

ज्वाली के मिनी हरिद्वार में आयोजित इस अनुष्ठान में धर्म और इतिहास का एक अनूठा संगम देखने को मिला। कृष्ण चंद का यह कदम न केवल एक धार्मिक कृत्य है, बल्कि इतिहास के उन काले अध्यायों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक सामाजिक और भावनात्मक प्रयास भी है, जहां भीषण नरसंहारों में लाखों हिंदुओं को अपने प्राण गंवाने पड़े थे।

इस पहल ने स्थानीय लोगों को भी श्राद्ध और तर्पण के वास्तविक महत्व पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है। उनका मानना है कि हमारे पूर्वजों के साथ-साथ, राष्ट्र और समाज के लिए बलिदान देने वाले अज्ञात शहीदों को भी याद करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।

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