हिमाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों में नशे के खात्मे को लेकर अभी कई गंभीर प्रयासों की सख्त जरूरत है व्यवस्था परिवर्तन सरकार को
हिमाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों में नशे के खात्मे को लेकर अभी कई गंभीर प्रयासों की सख्त जरूरत है व्यवस्था परिवर्तन सरकार को
नूरपुर : विनय महाजन /
नूरपुर हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा चिट्टे को खत्म करने को लेकर रैली से लेकर अन्य प्रयास किये तो जा रहे है लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र में इसके खात्मे को लेकर अभी कई गम्भीर प्रयासों की सख्त जरूरत है। गोरतलव है कि नूरपुर उपमंडल में जुलाई 2023 में नशे की बढ़ती समस्या को रोकने और लोगों को इसके दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करने के लिए पुलिस, स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन द्वारा सामुदायिक भागीदारी के साथ बहुआयामी ‘सार्थी’ योजना एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू की गई थी। इस योजना के शुभारंभ में पुलिस ने आक्रामक तरीके से ड्रग एडिक्ट्स और पेडलर्स की कॉन्टेक्ट-ट्रेसिंग की, लेकिन क्षेत्र में उचित पुनर्वास केंद्रों की कमी के चलते यह अभियान धीरे-धीरे धीमा पड़ गया और अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए।यह अभियान उस समय शुरू हुआ था जब क्षेत्र में दो युवकों की अचानक मौत के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह सामने आया कि दोनों ही युवक एच आई वी और हेपेटाइटिस-सी से संक्रमित थे जो इंजेक्शन द्वारा नशा करने और सुई साझा करने से फैलने वाली गंभीर बीमारियाँ हैं। इस अभियान के बाद स्वास्थ्य विभाग द्वारा जुटाए गए आंकड़ों ने इस अंतरराज्यीय सीमा क्षेत्र में सिंथेटिक ड्रग, विशेषकर चिट्टा की गहरी पैठ का खुलासा किया। इस मामले मे कई संक्रमित युवा जिनकी आयु 18 से 35 वर्ष के बीच थी एक ही दूषित सुई के प्रयोग से गंभीर बीमारियों की चपेट में आए।अंतरराज्यीय तथा स्थानीय नशा तस्करों पर दबाव बढ़ने के बाद चिट्टा की उपलब्धता कम हुई और कीमतें बढ़ गईं। इसके चलते कई नशा करने वाले युवक एल्युमिनियम फॉइल पर चिट्टा जलाकर सूंघने की बजाय इंजेक्शन का उपयोग करने लगे, जिससे उनकी स्वास्थ्य जटिलताएँ और बढ़ गईं। इस सार्थी’ योजना के तहत पुलिस ने सबसे पहले पेडलर्स और एडिक्ट्स की कॉन्टेक्ट-ट्रेसिंग की। एच आई वी और हेपेटाइटिस-सी से संक्रमित युवाओं को तुरंत नूरपुर सिविल अस्पताल और टांडा मेडिकल कॉलेज में उपचार उपलब्ध करवाया गया। इसी अभियान के अंतर्गत नूरपुर सिविल अस्पताल में एक ओपिऑइड सब्स्टीट्यूशन ट्रीटमेंट केंद्र भी स्थापित किया गया, जहाँ विशेषज्ञ की निगरानी में युवाओं को सिंथेटिक ड्रग से बाहर निकलने की चिकित्सीय सहायता प्रदान की जा रही है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी ने ‘मानव सेवा ट्रस्ट’ को भी इस मिशन में जोड़ा है, जो जोखिमग्रस्त युवाओं के बीच काम कर रही है और सुई साझा करने की प्रवृत्ति को रोकने पर जोर दे रही है। इस मामले मे विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि नूरपुर जैसे सीमावर्ती क्षेत्र में एक सुसज्जित पुनर्वास केंद्र की अनुपस्थिति सबसे बड़ी चुनौती है। मनोचिकित्सक डॉ. सुमित सिंह ने कहा कि ऐसे केंद्र युवाओं को सुरक्षित, विश्वसनीय और कलंक-मुक्त वातावरण उपलब्ध कराते हैं, जहाँ परिवार बिना झिझक उपचार के लिए आ सकें। “सीमान्त क्षेत्रों में समर्पित पुनर्वास केंद्र की उपलब्धता अनिवार्य है, ताकि समय पर हस्तक्षेप, संगठित उपचार और दीर्घकालिक सुधार संभव हो सके,” उन्होंने कहा। चिकित्सा विशेषज्ञों ने पूरे प्रदेश के प्रत्येक सिविल अस्पताल में ओ एस टी केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। उनका कहना है कि केवल युवाओं की गिरफ्तारी नशा मुक्ति का समाधान नहीं है। काउंसलिंग, सुरक्षित उपचार और व्यापक रणनीति ही युवाओं को मुख्यधारा में वापस ला सकती है और सरकार की एंटी-चिट्टा मुहिम को सार्थक बना सकती है।


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