काठगढ़ में शिव और पार्वती दोनों एक साथ विराजमान
काठगढ़ में शिव और पार्वती दोनों एक साथ विराजमान
फतेहपुर (वलजीत ठाकुर):- हिमालय के आँचल में बसा हिमाचल प्रदेश अपनी अलौकिक एवं मनोहारी धरती के कारण आदिकाल से ही देवी-देवताओं की प्रिय तपस्थली रहा है। इसी देव संस्कृति की वजह से हिमाचल को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है।
कांगड़ा ज़िला के इन्दौरा उपमंडल मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर व्यास दरिया तथा छौंछ खड्ड के संगम पर एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जहां भगवान शिव और माता पार्वती दोनों के रूप एक साथ विराजमान हैं। इसके छोटे भाग को मां पार्वती तथा ऊँचे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है।
शिवलिंग के रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊँचाई लगभग 7-8 फुट है; जबकि माता पार्वती के रूप में आराध्य हिस्सा 5-6 फुट ऊँचा है । यह पावन शिवलिंग अष्टकोणीय तथा काले-भूरे रंग का है। इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती और भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है। यहां पर हर वर्ष शिवरात्रि के पावन पर्व पर तीन दिवसीय जिला स्तरीय महोत्सव का आयोजन करवाया जाता है, जिसमें प्रदेश के अतिरिक्त सीमांत राज्यों के लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
मेले के आयोजन का जिम्मा स्थानीय प्रशासन व मंदिर कमेटी के पास रहता है। एसडीएम एवम सहायक आयुक्त(मंदिर), इंदौरा सुरिंदर ठाकुर के अनुसार इस वर्ष ज़िला स्तरीय मेले का आयोजन 23 से 25 फरवरी तक किया जा रहा है। जिसके लिये प्रशासन द्वारा विशेष प्रबंध किए गए हैं।
इस मंदिर के इतिहास के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। शिव पुराण में वर्णित कथानुसार श्रीब्रह्म तथा श्रीविष्णु के मध्य अपने बड़प्पन को लेकर विभिन्न अस्त्रों-शस्त्रों के साथ भयानक युद्व हुआ था। भगवान शिव आकाश मंडल से कौतुहलवश यह युद्व देख रहे थे। दोनों एक दूसरे के वध की इच्छा से महेश्वर और पाशुपात अस्त्र का प्रयोग करने में प्रयासरत थे; लेकिन इनके प्रयोग से त्रैलोक्य भस्म हो सकता था।
संभावित महाप्रलय को देखकर भगवान शंकर से नहीं रहा गया। इस युद्व को शांत करवाने के लिए भगवान शिव को महाग्नि तुल्य स्तम्भ के रूप में, उन दोनों के सामने प्रकट होना पड़ा। इसी महाग्नि तुल्य स्तम्भ को काठगढ़ स्थित महादेव का विराजमान शिवलिंग माना जाता है।
मंदिर के उत्थान के लिए यहां प्राचीन शिव मंदिर सुधार सभा गठित है, जो यहां की व्यवस्था की देखरेख करती है। सभा द्वारा मंदिर में आने वाले श्रद्वालुओं की सुविधा के लिए कई विकास कार्य किये गए हैं। श्रद्धालुओं की दिन- प्रतिदिन बढती संख्या को देखते हुये उनके ठहरने व निःशुल्क लंगर की व्यवस्था भी उपलब्ध रहती है।
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