आइए जानें पूर्णिमा व चन्द्र ग्रहण के विषय में, ग्रहण के बाद करें यह काम
आइए जानें पूर्णिमा व चन्द्र ग्रहण के विषय में, ग्रहण के बाद करें यह काम
हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है. साल में कुल 12 पूर्णिमा पड़ती है. हर माह में पड़ने वाली पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है. यह व्रत हर माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है. साल 2025 में भाद्रपद माह की पूर्णिमा 7 सितंबर, 2025 रविवार के दिन पड़ रही है. पूर्णिमा तिथि का व्रत समस्त प्रकार के सुख-सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है.पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन चंद्रमा अपने सम्पूर्ण रूप में प्रकाशित होता हैं. पूर्णिमा का व्रत पापों के नाश और मानसिक शुद्धि के लिए किया जाता है और बहुत फलदायी होता है. पूर्णिमा का व्रत मानसिक शांति, सुख-समृद्धि और पापों से मुक्ति प्रदान करता है.
पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 6 सितंबर 2025 शनिवार को रात 1 बजकर 42 मिनट पर होगी.
पूर्णिमा तिथि समाप्त 7 सितंबर रविवार को रात 11 बजकर 39 मिनट होगी.
इस दिन चंद्रोदय का समय शाम 6 बजकर 26 मिनट रहेगा.
पूर्णिमा व्रत विधि (Purnima Vrat Vidhi)
पूर्णिमा व्रत के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प लें.
संकल्प लेते समय इस मंत्र का जाप करें, ‘ॐ विष्णवे नमः मम संकल्पितं पूर्णिमा व्रतं सफलं कुरु’.
इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है.
चौकी पर भगवान विष्णु और सत्यनारायण भगवान की मूर्ति स्थापित करें.
भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं.
भगवान को पीले वस्त्र, फूल, तुलसी पत्र, और चंदन अर्पित करें.
प्रसाद के रूप में खीर, हलवा, या मोदक अर्पित करें.
शाम के समय चंद् देव को अर्घ्य अर्पित करें.
पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए व्रत रखें.
चंद्रदेव की पूजा करें.
पूर्णिमा व्रत कथा करें.
इस दिन सत्यनारायण व्रत की कथा और आरती करें.
पूजा के बाद फलाहार या हल्का भोजन करें.
ग्रहण काल:
7 सितंबर की रात को चंद्र ग्रहण भी लगने जा रहे है। यह ग्रहण रात 9 बजकर 58 मिनट से लेकर देर रात 1 बजकर 26 मिनट तक बना रहेगा। इसकी कुल अवधि 3 घंटे 29 मिनट तक होगी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या पूर्णिमा का व्रत ग्रहण के साथ रखा जा सकता है? आइए जानते हैं कि इस दिन व्रत रखना शुभ रहेगा या नहीं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत तो रखा जा सकता है, लेकिन ग्रहण और सूतक काल में पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए। पूर्णिमा तिथि पर व्रत का संकल्प ग्रहण शुरू होने से पहले लें। साथ ही पूजा-पाठ और कथा ग्रहण समाप्त होने के बाद ही करें। ग्रहण के बाद गंगाजल का छिड़काव करके शुद्धि करें और फिर भगवान सत्यनारायण की पूजा करें।
भारत में जब 7 सितम्बर, 2025 ई. की रात्रि 9 बजकर, 57 मिनट पर चन्द्रग्रहण शुरु होगा अथवा 20षं.-58मिं. पर चन्द्र मालिन्य आरम्भ होगा, उस समय से बहुत पहले ही सम्पूर्ण भारत में चन्द्र-उदय हो चुका होगा। भारत के सभी नगरों/ग्रामों में 7 सितम्बर को सायं 6:00 से 7:00 तक चन्द्रोदय हो जाएगा तथा यह खग्रास चन्द्रग्रहण 7 सितम्बर की रात्रि 21-57 मिं से प्रारम्भ होकर रात्रि 25-26 मिं. (अर्थात् 1 बजकर 26 मिनट) पर समाप्त (मोक्ष) होगा। भारत के सभी नगरों में इसका प्रारम्भ, मध्य तथा मोक्ष रूप देखा जा सकेगा।
इस ग्रहण में चन्द्रबिम्ब पश्चिम-दक्षिण की ओर से ग्रसित होकर उत्तर-पूर्व की ओर से मुक्त होगा। इस ग्रहण की स्पर्श-मोक्ष की दिशाएं,
ग्रहण का सूतक-इस ग्रहण का सूतक 7 सितम्बर, 2025 ई. को दोपहर 12घं.-57मिं. (भा.स्टैं.टा.) पर प्रारम्भ हो जाएगा।
ग्रहण-काल तथा बाद में क्या करें-क्या न करें ?
ग्रहण के सूतक तथा ग्रहणकाल में स्नान, दान, जप-पाठ, मन्त्र, स्तोत्र-पाठ, मन्त्र-सिद्धि, तीर्थस्नान, ध्यान, हवनादि शुभ कृत्यों का सम्पादन करना कल्याणकारी होता है। धर्मनिष्ठ लोगों को ग्रहणकाल अथवा 7 सितम्बर को सूर्यास्त से पूर्व ही अपनी राश्यानुसार अन्न, जल, चावल, सफेद वस्त्र, फल (ऋतु अनुसार) आदि अथवा ब्राह्मण के परामर्शानुसार दान योग्य वस्तुओं का संग्रह करके संकल्प कर लेना चाहिए तथा अगले दिन 8 जुलाई को प्रातः सूर्योदय के समय पुनः स्नान करके संकल्पपूर्वक सामग्री/वस्तुएँ योग्य ब्राह्मण को दान देनी चाहिएं।
"पुत्रजन्मनि यज्ञे च तथा सङक्रमणे रवेः। रहोश्च दर्शने कार्यं पूर्णं नान्यथा निशि।। (वसिष्ठ)
अर्थात् पुत्र की उत्पत्ति, यज्ञ, सूर्य-संक्रान्ति और सूर्य-चन्द्र के ग्रहण में रात्रि में भी स्नान करना चाहिए।"
सूतक एवं ग्रहण-काल में मूर्त्ति स्पर्श करना, अनावश्यक खाना-पीना, मैथुन, निद्रा, नाखुन-काटना, तैलाभ्यंग वर्जित है। झूट-कपटादि, वृथा अलाप, मूत्र-पुरीषोत्सर्ग से परहेज़ करना चाहिए। वृद्ध, रोगी, बालक एवं गर्भवती स्त्रियों को यथानुकूल भोजन या दवाई आदि लेने में कोई दोष नहीं। गर्भवती महिलाओं को ग्रहणकाल में सब्ज़ी काटना, पापड़ सेंकना आदि उत्तेजित कार्यों से परहेज़ करना चाहिए तथा धार्मिक ग्रन्थ का पाठ करते हुए प्रसन्नचित्त रहे। इससे भावी सन्तति स्वस्थ एवं सद्गुणी होती है। हरिद्वार, प्रयाग, वाराणसी, अयोध्या आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष माहात्म्य होगा।
"ग्रहणस्पर्शकाले स्नानं मध्ये होमः सुराचर्नम्। श्राद्धं च मुच्यमाने दान मुक्ते स्नानमिति क्रमः।। (धर्मसिंधुः)
अर्थात ग्रहण में स्पर्श के समय स्नान करना, मध्य में गृह और देवपूजन तथा ग्रहण के समय में श्राद्ध और अन्न, वस्त्र, धनादि का दान और सर्वमुक्त होना पर स्नान करना-यह क्रम है।"
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