रेलवे ट्रैक की लगातार अनदेखी की वजह से सुनसान पड़े रेलवे स्टेशन
रेलवे ट्रैक की लगातार अनदेखी की वजह से सुनसान पड़े रेलवे स्टेशन
नगरोटा सूरियां : प्रेम स्वरूप शर्मा /
कांगड़ा घाटी के पठानकोट जोगिन्दरनगर रेलवे ट्रैक की लगातार अनदेखी की वजह से रेलवे स्टेशन सुनसान पड़े हैं। अगस्त 2022 में चक्की खड्ड पुल के दो पिल्लर भारी वर्षा के कारण ध्वस्त होने से पहले इन रेलवे स्टेशनों पर खूब चहल पहल रहती थी। अब ग्रामीण पिछले नौ महीने से फिर इस चहल पहल की आस लगाए बैठे हैं।
कांगड़ा घाटी के ग्रामीण रेल बहाली को लेकर 2024 से लगातार रोष प्रकट करते आ रहे हैं। भारत जोड़ो राष्ट्र अभियान के सदस्य पीसी विश्वकर्मा ने तो नवंबर 2022 से लेकर चार बार दिल्ली के जंतर मंतर में धरना प्रदर्शन भी किया। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद डॉ. राजीव भारद्वाज ने सांसद बनने के बाद लोगों के रोष का संज्ञान लेकर पठानकोट - जोगिन्दरनगर रेलमार्ग के मुद्दे को लोकसभा में उठाया तो रेलवे बोर्ड ने चक्की खड्ड रेलवे पुल निर्माण पूरा करने का 31 मार्च 2025 का लक्ष्य रखा। 31 मार्च बीतने के बाद 30 अप्रैल और फिर 31 अक्टूबर तक रेल बहाली का लक्ष्य निर्धारित किया। कांगड़ा घाटी के लोगों में उस समय रोष पनपने लगा तो मण्डल रेलवे जम्मू ने नवंबर के अंतिम सप्ताह तक रेलगाड़ियां बहाल करने की बात कही और इसके लिए 15 नवंबर को रेल इंजन से नूरपुर रोड से ज्वालामुखी रोड के बीच सफल ट्रायल भी कर लिया। इससे ग्रामीणों में नवंबर अंत तक रेलगाड़ियों की बहाली की उम्मीद जगी थी। लेकिन उनकी उम्मीदों पर उस समय पानी फिर गया जब भारत सरकार की ओर से गठित रेल उपभोक्ता सलाहकार समिति के सदस्य दीपक भारद्वाज ने 28 नवंबर को उत्तरी रेलवे मण्डल जम्मू को पत्र लिख जानकारी मांगी तो पता चला कि चक्की खड्ड रेलवे पुल का संचालन 25 दिसंबर तक किया जाएगा और उसके बाद ही रेलगाड़ियों की पठानकोट से जोगिन्दरनगर तक बहाल हो पाएंगीं। हैरानी की बात है कि जब चक्की खड्ड पुल पूरी तरह तैयार है तो रेल बहाली में जानबूझ कर देरी क्यों की जा रही है।
उधर कांगड़ा घाटी रेलवे संघर्ष समिति व लोकतांत्रिक भारत निर्माण की कोर कमेटी ने रेलवे विभाग को रेलगाड़ियों की बहाली के लिए 10 दिसंबर तक का समय दिया और चेताया है कि यदि रेलवे तय समय में रेलगाड़ियां बहाली में असफल रहा तो रोष मार्च के साथ आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा।
नगरोटा सूरियां निवासी आंनद साहिल व अश्वनी गुलेरिया का कहना है कि यदि रेलवे बोर्ड को लग रहा है कि पुल का संचालन करने में देरी हो सकती है तो पहले की तरह नूरपुर रोड से बैजनाथ तक ही रेलगाड़ियां चलाई जाएं। क्योंकि बैजनाथ से कांगड़ा तक टूटीं रेलगाड़ियां पहले ही आवाजाही कर रही हैं, तो इन्हें कांगड़ा से नूरपुर रोड तक भी बढ़ाया जा सकता है। उनका तर्क है कि रेलमार्ग सस्ता और सुगम साधन होने की वजह से यहां रेलगाड़िया कांगड़ा घाटी की लाइफ लाइन मानी जाती है, वही देश-विदेश से पठानकोट से लोग कांगड़ा में स्थित धार्मिक स्थलों को दर्शन के लिए इस मार्ग का प्रयोग करते रहे हैं। जबकि आम जनता व टांडा अस्पताल में रोगियों के तामीरदारों, मजदूर, कर्मचारी एवं व्यवसायियों आदि कई प्रकार के लोगों का यह सस्ता साधन रहा है।


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